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समाचारी ।
टिप्पणी- जैनदर्शन में मिक्षु के लिये सुबह तथा सायं इस तरह दो समय
प्रतिक्रमण करना आवश्यक बताया है। प्रतिक्रमण में, हुऐ दोषों की भालोचना तथा भविष्य में वे दोप फिर न हो उसका संकल्प किया जाता है। (४०) उस कायोत्सग में भिक्षु उस दिवस सम्बन्धी ज्ञान, दर्शन
अथवा चारित्र में लगे हुए दोषों का क्रमशः चितवन
करे। (४१) कायोत्सर्ग पाल कर फिर गुरू के पास आकर उनकी वंदना
करे। बाद में उस दिन में किये गये अतिचारों (दोषों).
को क्रमपूर्वक गुरु से निवेदन करे । (४२) इस प्रकार दोष के शल्यसे रहित होकर तथा समस्त जीवों की क्षमापना लेकर फिर गुरू को नमस्कार कर
से छुड़ानेवाला ऐसा कायोत्सर्ग ध्यान करे। (४३) कायोत्सर्ग करके फिर गुरु की वन्दना करे. (प्रत्याख्यान
करे ) और उसके बाद पंचपरमेष्ठी की स्तुतिमंगल पाठ ___ करके स्वाध्यायकाल की अपेक्षा (इच्छा) करे। टिप्पणी-अतिक्रमण के ६ आवश्यक ( विभाग) होते हैं। वह सब
विधि ऊपर लिखी जा चुकी है। (४४) ( अब गत की विधि बताते हैं ) मुनि पहिले प्रहर मे
स्वाध्याय, दूसरे में ध्यान, तीसरे में निद्रा और चौथे प्रहर
में स्वाध्याय करे। (४५) चौथी पोरसी का काल आया हुआ जान कर, अपनी
आवाज से गृहस्थ न जाग उठे उस प्रकार धीमे से
स्वाध्याय करे। (४६) चौथी पोरसी का चौथा भाग बाकी रहे (अर्थात सूर्योदयः