________________
समाचारी
२९९
(३२) तीसरे प्रहरमें निम्नलिखित ६ कारणों में से यदि कोई भी
कारण उपस्थित हो तो साधु आहार-पानी की गवेषणा
करे। टिप्पणी-भिक्षाचरी जाने के लिये तीसरे प्रहर का विधान काल तथा
क्षेत्र देखकर किया गया है। उसका भाशय समझकर विवेक
पूर्वक समन्वय करना चाहिये। (३३) ( वे ६ कारण ये हैं ) (१) क्षुधा वेदना को शांति के
लिये; (२) सेवा के लिये (शक्त शरीर होगा तो दूसरों की सेवा ठीक २ हो सकेगी); (३) ईथि के लिये (खाये बिना आंख के सामने अन्धेरा आता हो तो उसे दूर कर ईर्यासमिति-पूर्वक मार्गगमन किया जा सके); (४) संयम पालने के लिये; (५) जीवन निभाने के लिये; और (६) धर्मध्यान तथा आत्मचिंतन करने के
लिये निग्रंथ साधु अहार-पानी का ग्रहण करे। (३४) धैर्यवान साधु अथवा साध्वी निम्नलिखित ६ कारणों से
श्राहार-पानी ग्रहण न करे तो वह असंयमी नहीं माना
जाता (अर्थात् संयम का साधक ही माना जाता है ):-- (३५) (१) रुग्णावस्था में, (२) उपसर्ग (पशु, मनुष्य
अथवा देव-कृत कष्ट) आवे उसे सहन करने में, (३). ब्रह्मचर्य पालन के लिये, (४) सूक्ष्म जंतुओं की उत्पत्ति हुई जानकर उनकी दया पालने के निमित्त, (५) तप करने के निमित्त, (६) शरीर का अन्तिम काल आया जान कर संथारा (प्रहण) के लिये। (इन ६ कारणों