________________
उत्तराध्ययन सूत्र
( ध्यान कहीं से कहीं चला जाय ) । इस प्रकार १३ प्रकार की अप्रशस्त प्रतिलेखनाएं होती हैं ।
( २८ ) बहुत कम अथवा विपरीत प्रतिलेखना न करना यही उत्तम है। बाकी के दूसरे समस्त प्रकारों को तो अप्रशस्त ही समझना चाहिये ।
टिप्पणी- प्रतिलेखना के ८ भेद हैं उनमें से उपरोक्त प्रथम प्रकार का आचरण करना चाहिये । शेष भेदों को छोड़ देना चाहिये । (२९) प्रतिलेखना करते २ यदि ( २ ) परस्पर वार्तालाप करें: (२) किसी देश का समाचार कहे, ( ३ ) किसी को प्रत्याख्यान ( व्रतनियमादि ) दे; ( ४ ) किसी को पाठ यादि दे; श्रथवा ( ५ ) प्रश्नोत्तर करे तो ---
(३०) वह साधु प्रतिलेखना में प्रमोद करने का दोषभागी होता है और पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि तथा बनस्पति स्थावर नथा चलते फिरते त्रस जीवों की हिंसाका दोषी होता है । (३१) और जो साधु प्रतिलेखना में बराबर उपयोग लगाता है अग्नि, तथा वनस्पति के स्थावर जीवों का रक्षक बनता है ।
वह पृथ्वी, जल, वायु, जीवों और टिप्पणी- यद्यपि
पात्रादि की प्रतिलेखना में प्रमाद करने से मात्र ग्रम जीवों की अथवा वायुकायिक जीवों का ही बात हो जाना सम्भव है परन्तु प्रमाद - यह ऐसा महादोष है कि यदि वह सूक्ष्म रूप में भी साधक की प्रवृत्ति में आ घुसे तो वह धीमे धीमे उसके जीवन में ही प्यास हो जाता है और फिर साधुको उसका उद्देश्य सुग्ाकर ऐसी अधोगति में ढाल देता है कि जहाँ छः काय के जीव की भी हिंसा हो सकती है, इसलिये उपचार से उपरोक्त कथन किया गया है
1