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यज्ञीय
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(४२) गीली और सूखी मिट्टी के दो लौदे हैं । इनको भीत से
मारने से जो लौंदा गीला है वही भीत से चिपट जाता है
और सूखा नहीं चिपटता ! (४३) इसी तरह कामभोगों में आसक्त, दुष्टवुद्धि जीव तो पाप
कर्म करके संसार से चिपट जाता है और जो विरक्त पुरुष हैं वे तो सूखी मिट्टी के ढेले के समान संसार से नहीं
चिपकते हैं। (४४) इस प्रकार जयघोष मुनिवर के समीप श्रेष्ठ धर्मोपदेश
श्रवण कर उस विजयघोष नामक ब्राह्मण ने संसार की
आसक्ति से रहित होकर दीक्षा अंगीकार की। (४५) इस तरह संयम तथा तपश्चर्या द्वारा अपने सकल पूर्व
सञ्चित कमों का नाश कर जयघोष तथा विजयघोष ये
दोनों मुनिवर सर्वश्रेष्ठ ऐसी मोक्षलक्ष्मी को प्राप्त हुए। टिप्पणी-जन्म से सभी जीव समान होते हैं । वे समानजीवि, समान
लक्षी तथा समान प्रयत्नशील होते हैं। सच पूंछा जाय तो जन्म से तो सभी शूद्र ही हैं किन्तु संस्कार होने से ही द्विज (जिनका संस्कार द्वारा दूसरा जन्म हुआ हो ऐसे ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य) बनते हैं। सारांश यह है कि पतन और विकास ये ही दो बातें ऊँच नीच की सूचक हैं। जन्मगत ऊँचनीचके भेद मानना यह तो कोरा ढोंग है-भ्रममात्र है।
जाति से तो कोई भी चर्चाढाल, ब्राह्मण, क्षत्रिय या वैश्य नहीं है। बहुत से मनुष्य जाति के चांढाल होने पर भी ब्राह्मण के समान होते है, बहुत से ब्राह्मणकुलजात मनुष्य चांडाल जैसे नीच होते हैं । बहुत से क्षत्रियकुलोत्पन मनुष्य वैश्य जैसे कायर होते हैं और बहुत से जाति के वैश्य क्षत्रियों के समान पराक्रमी होते