________________
२७४
उत्तराध्ययन सूत्र
-
~
-
~
~
~
~
-
~
~
-
~
~
~
-
--
-
~
-
-
-
-
~
-
-
-
-
-
(१७) (१) उपरोक्त ४ प्रकार के स्थानों में से केवल प्रथम
प्रकार ( अर्थात् जहां कोई प्राता जाता न हो और न किसी की दृष्टि ही पड़ती हो ऐसे गुप्त ) के स्थान में ही वैसी क्रिया करें। (२) उस स्थान का दूसरा विशेषण यह है कि वैसे एकान्त स्थान का उपयोग करने से किसी की हानि या किसी को दुःख न पहुँचे ऐसा निरापद होना चाहिये। (३) वह स्थान सम (ऊँचा
नीचा न ) हो । (१८) (४) वह स्थान घास पत्तों से रहित हो; (५) वह
स्थान अचित्त (चींटी, कुन्थु आदि जीवों से रहित ) हो; (६) वह स्थान एकदम तंग न हो किन्तु चौड़ा हो; (७) उसके नीचे भी अचित्त भूमि हो, (८) अपने निवास स्थान से अत्यन्त पास न हो किन्तु दूर हो, (९) जहां पर चूहे आदि जमीन के अन्दर रहने वाले जन्तुओं के विल (चिद्र) न हो, (१०) जहां प्राणी अथवा वीज न फैले हो-उपर्युक्त १० विशेषणों से
सहित स्थान में ही मलमूत्र त्यागने की क्रिया करे। (१९) ( भगवान सुधर्मस्वामी ने जंबूस्वामी से कहा:-हे
जम्बू ! पांच समितियों का स्वरूप यहां अति संक्षेप में ऊपर कहा है। अब तीन गुप्तियों का क्रम से वर्णन
करता हूँ सो ध्यानपूर्वक सुनो। टिप्पणी समितियों का सविस्तरवर्णन आचारांगादि सूत्रों में किया . है, जिज्ञासु वहां देख लेवें। (२०) मनोगुप्ति के चार भेद हैं:-(१) नोगुप्ति,