________________
२७२
उत्तराध्ययन सूत्र
ANVAR
FUNNNN
योग करने में संयमधर्म पूर्वक संभाल रखना-इसे एपणा
समिति कहते हैं। (१२) ऊपर को प्रथम गवेषणा ( अर्थात् उद्गमन) तथा उत्पा
दन (भिक्षा प्राप्त करने) में तथा दूसरी ग्रहणेपणा में तथा तीसरी उपयोगैपणा ( उपयोग करने) में लगनेवाले दोपों
से संयमी साधु को उपयोगपूर्वक दूर रहना चाहिये। टिप्पणी-दातार गृहस्थ के उद्गमन सम्बन्धी १६ दोप हैं । उसको
इन दोपों से रहित भिक्षाका ही दान करना चाहिये । उत्पादन (मिक्षा प्राप्त करने) के १६ दोप साधु के भी हैं और उन दोपों को बचाकर ही साधु को मिक्षा ग्रहण करनी चाहिये। ग्रहणपणा के१० दोप हैं वे गृहस्थ क्या भिक्षु दोनों को लागू पढ़ते हैं और उन दोपों से बचना इन दोनों का ही कर्तव्य है। इनके सिवाय ४ दोप भिक्षा भोगन (खाने ) के भी हैं, उन दोपों का परिहार कर साधु
भोजन करे। (१३) औधिक तथा औपग्रहिक इन दोनों प्रकार के उपकरण या
पात्र आदि संयमी जीवन के उपयोगी साधनों को उठाते
और रखते हुए भिक्षु को इस विधि का वरावर पालन,
करना चाहिये। .. टिप्पणी-औविक वस्तुएँ वे हैं जो उपभोग करने के वाद लौटा दी जाती
है जैसे उपाश्रय का स्थान, पाट,पाटला, आदि तथा औपग्रहिक वस्तुएँ वे हैं जो शास्त्रविधि पूर्वक ग्रहण करने के वाद वापिस नहीं की जाती,
जैसे वस्त्र, पान, आदि साधु के उपकरण । (१४) अच्छी तरह निगाह से पहिले वस्तु को देखे, फिर उसे,
झाड़े, उसके बाद ही उसे ले या रक्तो अथवा उपयोग. में ले।