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के शिगौतमीय
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स्थानरूप, अथवा गतिरूप या आधाररूप द्वीप. जो कुछ
भी कहो वह केवल एक धर्म ही है।' (६९) हे गौतम ! तुम्हारी बुद्धि सुन्दर है । तुमने मेरा संदेह दूर
कर दिया। अब मै तुम से दूसरा एक प्रश्न पूंछना
चाहता हूँ, उसका आप समाधान करो। (७०) एक महाप्रवाहवान् समुद्र में एक नाव चारों तरफ घूमती
फिरती है। हे गौतम ! आप उस नाव पर बैठे हो, तो तुम
पार कैसे उतरोगे? (७१) जिस नाव में छेद है वह पार न जाकर बीचही में डूब
जाती है और उसमे बैठनेवालों को भी डुबा देती है।
विना छेद की नाव ही पार पहुंचाती है। (७२) 'हे गौतम ! वह नाव कौनसी है ? केशीमुनि के इस
प्रश्न को सुनकर गौतम ने इस प्रकार उत्तर दिया:१७३) शरीररूपी नाव है, संसाररूपी समुद्र है और जीवरूपी
नाविक ( मल्लाह ) है। उस संसाररूपी समुद्र को शरीर र द्वारा महर्षि पुरुष ही तर जाते हैं। टिप्पणी-शरीर यह नाव है इसलिये इसमें कहीं से भी छेद न हो
जाय, अथवा यह टूटफूट न जाय-इसकी संभाल लेना तथा संयमर पूर्वक बैठे हुए नाविक (आत्मा) को पार उतारना यह महर्पि
पुरुषों का कर्तव्य है। ४) (केशीमुनि ने कहा:-) हे गौतम ! तुम्हारी बुद्धि उत्तम है।
येय माहेइ दुर कर दिया । मुझे एक और शंका है,