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________________ २५२ उत्तराध्ययन सूत्र AAVA उपस्थित थे और लाखों की संख्या में वहाँ गृहस्थ भी मौजूद थे। (२०) (अाकाश मार्ग में अदृश्य रूप से ) देव, दानव, गन्धर्व, यक्ष, राक्षस, किन्नर तथा अदृश्य अनेक भूत भी वह दृश्य देखने के लिये वहां इकट्ठे हुए थे। (२१) उस समय सबसे पहले केशीमुनि ने गौतम से यह कहा: हे भाग्यवंत ! मैं आपसे कुछ प्रश्न पूछना चाहता हूँ। उसके उत्तर में भगवान गौतम ने केशो महाराजर्षि को यह कहा(२२) हे भगवन् ! जो कुछ आप पूंछना चाहे वह आनंद के साथ पूछिये । इस प्रकार जब गौतममुनि ने केशीमुनि को उदारतापूर्वक कहा तब अनुनाप्राप्त केशी भगवान ने गौतम मुनि से यह प्रश्न पूछा:(२३) हे मुने ! भगवान पार्श्वनाथ ने चार महाव्रतरूप धर्म कहा है; किन्तु भगवान महावीर पाँच महाव्रतरूप धर्म बताते हैं टिप्पणी-याम शब्द का अर्थ यहाँ महाव्रत किया है। (२४) तो एक ही कार्य ( मोक्षप्राप्ति) की सिद्धि के लिये नि जित इन दोनों (तीर्थकरों द्वारा निरूपित धर्म ) के ये ( भिन्न वेश तथा भिन्न भिन्न श्राचार रखने का प्रयोजन । है ? हे बुद्धिमान गौतम ! इस एक ही मार्ग में दो प्रतेस *के विधिक सा है वजन्म सना &. . .... त काल से रहा।
SR No.010553
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyachandra
PublisherSaubhagyachandra
Publication Year
Total Pages547
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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