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समुद्रपालीय
समुद्रपाल का जीवन
या हुश्रा बीज कभी व्यर्थ नहीं जाता। श्राज नहीं
। तो कल-कभी न कभी वह उगेगा ही। शुभ बोकर शुभ पाना तथा बाद में शुद्ध होना-यही तो अपने जीवन का उद्देश्य है। ___ समुद्रपाल ने पूर्वभव में शुभ बोकर शुभस्थान में संयोजित होकर मनवांछित साधन पाये। उसने उनको खूब भोगा भी
और अन्त में उनका त्याग भी किया सही परंतु उसका हेतु कुछ दूसरा ही था। और हेतु की सिद्धि के लिये ही-मानों फांसी के तख्ते पर जाते हुए चोर को देखा ही था कि उसको देखते ही उसकी आंखें खुल गई। मात्र बाह्य वस्तु पर ही नहीं किंतु वस्तु के परिणाम पर भी उसकी अन्तष्टि जा वोया हुधा अव उदित हुश्रा, संस्कार जागृत हुए, पवित्र की भावना बलवती हुई और इस समर्थ आत्मा ने. साधना पूरी की।