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उत्तराध्ययन सूत्र
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(२) अश्वदल, हाथीदल, रथदल और पायदल इन चार प्रकार
की बड़ी सेनाओं से वेष्ठित (घिरा हुआ)(३) रस ( पशु मांस के स्वाद) में आसक्त वह महाराजा
घोड़े पर सवार होकर कांपिल्यकेसर नामक उद्यान में मृगों को भगा भगा कर भयत्रस्त कर रहा था तथा जो मृग दौड़ते २ थक जाते थे उन्हें वाण द्वारा वींध
डालता था। (४) उसी कांपिल्य केसर उद्यान में तपोधनी (तपस्वी) तथा
स्वाध्याय (चिंतन) और ध्यान में लगे हुए एक अण.
गार (साधु ) धर्मध्यान में लीन होकर बैठे थे। (५) वृक्षों से व्याप्त ऐसे नागरवेल के मंडप के नीचे वे मुनि
आस्रव ( कर्मागमन) को दूरकर निर्मल चित्त से ध्यान कर रहे थे। उनके पास आये हुए एक मृग को भी
राजा ने वाणविद्ध कर दिया। टिप्पणीः- राजा को यह खबर नहीं थी कि यहां कोई मुनिराज बैठे हैं।
नहीं तो शिष्टता की दृष्टि से वह ऐसे महायोगी के पास ऐसी घोर
हिंसा का काम न करता। (६) हांफते हुए घोड़े पर जल्दी जल्दी दौड़कर आया हुआ वह
राजा वहां पर पड़े हुए उस मृग हिरण को देखता है
और उसको देखते ही पास में ध्यानस्थ बैठे उन त्यागी
महात्मा को भी देखता है। (७) ( यह देखते ही कि मेरे बाण से शायद मुनिराज मारे
गये! यदि मुनिराज न मारे गये हों तो (क्योंकि यह मृग उनके पास आया था तो संभव है यह मृग योगिराज