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यह है कि इस ग्रन्थ में अन्तर्भूत भगवान महावीर की प्रेरणात्मक वाणी का लाभ जैन, जैनेतर सब कोई ले सके ।
सहायक इस अनुवाद में जो कुछ भी असाम्प्रदायिकता आ सकी है वह सब मेरे पूज्य गुरुदेव श्री नानचन्दजी महाराज की संस्कृति का ही अनुग्रह है, इतना ही नही किन्तु इस अनुवाद को सांगोपांग देख जाने तथा यथास्थान संशोधन कर अपने विशाल अवलोकन का लाभ उनने दिया है उस अनुपम एवं अतुल्य उपकार को हृदय से मान कर अपने कथन को समाप्त करता हूँ।
'सन्तबाल
घाटकोपर-मुंबई चातुमास्य निवास-सं० १९९१: