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रूप में रह ही जाता है, इन टिप्पणियों द्वारा यथाशक्प उस कमी की “पृर्ति की है।
संस्कार]-अर्थ करते समय सरल से सरल शब्द और केवल बोलचाल की भाषा ही व्यवहन करने का बहुत अधिक ध्यान रक्खा है। -बहुत से पारिभापिक शब्दों में सुन्दरता लाने के लिये उनके मूल रहस्य - की रक्षा करते हुए कहीं २ पर भाषा संस्कार भी किया है, जैसे 'नियोगट्टी'
अर्थात् नियोगार्थी, मोक्षार्थी । इस शब्द का जैन परिभाषा में प्रायः "इन्हीं अथों में उपयोग होता है किन्तु यदि इसी शब्द का मुमुक्षु किंवा मोक्षार्थी अथ में व्यवहार करें तो वह और भी विशेप सुन्दर एवं व्यापक होगा । इसी तरह अन्य बहुत से शब्द, जैसे कि, संग, कामगुग, गृद्धि आदि सभी पारिभापिक शब्दों को उचित प्रसंगों में प्रकरण संबंध तथा भाषा संबंधी माधुनिक संस्कारिता तथा शैली को निभाते हुए संस्कारित किया है। फिर भी सूत्र के मूल आशय में किंचिन्मात्र भी फेरवदल न हो, इसका सर्वत्र एव सर्वदा ध्यान रक्खा है।।
[मुत्र की जीवन व्यापकता] अहिंसा के सिद्धान्त का गंभीर प्रतिपादन, त्यागाश्रम की योग्यता, विश्वव्यापी प्रेम, स्त्री पुरुषों के “समानाधिकार, संयम की महत्ता, कर्मावलंबी वर्ण व्यवस्था, जातिवाद का घोर खंडन, गृहस्थ श्रावक के कर्तव्य, आदि आदि इतने उत्तम पदार्थ पाठ भगवान महावीर के प्रतिपादित प्रवचनों में स्पष्ट रूप से मिल जाते हैं कि आज के वर्तमान युग को धार्मिक दिशा की तरफ लेजाने में बहुत ही प्रेरणा-जनक सिद्ध होंगे। सूत्र की यह जीवनव्यापी दृष्टि स्पष्ट करने की तरफ इस तमाम अनुवाद में सविशेष ध्यान रखा गया है।
(असाम्प्रदायिकता)-सामान्यतः केवल एक ही प्रकार की -साम्प्रदायिकता अथवा मान्यता को पुष्ट न करते हुये केवल तात्विक * बुद्धि पूर्वक ही कार्य करने के उद्देश को अन्त तक मध्ये नज़र रक्खा है। इन सब दृष्टि विन्दुओं को लक्ष्य में रखने का एक ही कारण है और वह