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________________ संयतीय →←>< संयति राजर्षि संबंधी १८ चरित्रशील का मौन जो प्रभाव डालता है वैसा प्रभाव हजारों व्याख्यानदाता अथवा लाखों चौपड़े (ग्रंथ) नहीं डाल सकते । ज्ञान का एकतम उद्देश्य चारित्र का स्फुरण (उत्पत्ति ) है | चारित्र की एक ही चिनगारी सैंकड़ों जन्मों के कर्मावरण (कर्मों के परदों ) को जला कर भस्म कर देती है । चारित्र की सुवास करोड़ों पापों की दुगंध को नष्ट कर देती है । एक समय कंपिला नगरी के महाराजा शिकार के लिये कांपिल्यकेसर वन में प्रविष्ट होते है इस कारण इस वन के समस्त निर्दोष मृगादिक पशु भयभीत हो बेचैन हो जाते हैं । मृगया रस में डूबे हुए महाराजा के हृदय में दया के बदले निर्दयता ने अड्डा जमाया है । घोड़े पर सवार होकर, अनेक हिरनों को बाण मारने के चाद ज्यों हीं वह एक घायल मृग के पास आता है त्यों ही उस -मृग के पास पद्मासन लगा कर बैठे हुए एक योगिराज को वह
SR No.010553
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyachandra
PublisherSaubhagyachandra
Publication Year
Total Pages547
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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