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उपोद्घात
भगवान 'गवान महावीर के उपलब्ध सूत्रों को दो विभागों में बाँटा है ( १ ) अंगप्रविष्ट, और (२) अंगबाह्य | अंगप्रविष्ट सूत्रों का गुंथन गणधरों (भगवान महावीर के पट्टशिष्यों) ने किया है और भंगवाह्य सूत्रों का गुंथन गणधरों ने तथा पूर्वाचार्यों ने किया है । किन्तु उन दोनों में उपदिष्ट तात्विक सूत्र भगवान महावीर एवं उनके पूर्ववर्ती तीर्थकरों के आत्मानुभव के ही प्रसाद है ।
उत्तराध्ययन सूत्र का समावेश अंगवाह्य सूत्रों में होता है फिर भी यह संपूर्ण सूत्र सुधर्मस्वामी ( भगवान महावीर के ११ गणधरों में से पाँचवें, जिनका गोत्र अनि वैश्यायन था उन ) ने जंबूस्वामी ( सुधर्म स्वामी के शिष्य ) को संबोधन करके कहा है; और उसमें जगह जगह “समयं गोयम मा पमायपु", "कासवेण महावीरेण एवमक्वायं" इत्यादि आये हुए सूत्र इस बात की साक्षी देते हैं कि भगवान महावीर ने अपने जीवन काल में इन सूत्रों को गौतम के प्रति कहा था ।
* जन परम्परा के अनुसार उत्तराध्ययन का कालनिर्णय
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श्वेताम्बर मूर्तिपूजक तथा श्वेताम्बर स्थानकवासी इन दोनों सम्प्रदायों को मान्य बत्तीस सूत्रों में यह एक उत्तम सूत्र है और अंग उपांग,
६ " उत्तराध्ययन नी श्रोलखाण" नामक निबंध प्रोफेसर मिस्टर दवे महाशय ने लिखा है जो ज्यों का त्यों आगे दिया गया है ।
यहां तो मात्र जैन परम्परा
की मान्यतानुसार विचार किया गया
है
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