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उत्तराध्ययन सूत्र
टिप्पणी- सांप अपने ही शरीर से उत्पन्न हुई कांचली को छोड़कर फिर ग्रहण करने की इच्छा नहीं करता है उसी तरह साधकों को आसक्ति रूपी कांचली छोड़ देनी ही उचित है ।
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. (३५) ( जसा व विचार में पड़ गई कि जब ये सब ) जैसे रोहित मत्स्य जीर्ण जाल को तोड़कर उससे निकल भगते हैं उसी तरह ये कामभोग रूपी जाल से छूटे जा रहे हैं और जैसे जातिमान् वृपभ (बैल) रथ के भार को ही ये धीर चारित्र्य तथा सचमुच ही त्यागमार्ग पर
पने कंधे पर उठाता है वैसे तपश्चर्या के भार को उठाकर जा रहे हैं ।
- (३६) फैली हुई जाल को तोड़कर जैसे पक्षी दूर २ श्राकाश में स्वच्छन्द विचरते हैं वैसे ही भोगों की जाल तोड़कर मेरे दोनों पुत्र तथा पति त्यागधर्म अंगीकार कर रहे हैं तो मैं उनका अनुसरण क्यों न करूं ?
इस तरह ये चारों समर्थ आत्मायें थोड़े ही समय में अनेक प्रकार के धनधान्य, कुटुंब-परिवार, दासी- दास, यादि को निरासक्त भाव से छोड़कर त्यागधर्म धारण करती हैं और व उनकी संपत्ति का कोई वारिस न होने से वह सब राज दरबार में लायी जाती है ।
(३७) विशाल तथा कुलीन कुटुंब, धन और भोगों को छ दोनों पुत्र तथा पत्नी सहित भृगु पुरोहित का मण ( दीक्षा मह
मा
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