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उत्तराध्ययन सूत्र
से छूटने के लिये किसी योगीश्वर को देखकर कामभोगों से विरक्त होगये ।
टिप्पणी- जंगल में कुछ योगिजनों के दर्शन होने के बाद पूर्वयोग का स्मरण हुआ और जन्म, जरा तथा मृत्यु से भरे हुए इस संसार से छूटने के लिये उन्हें आदर्श त्याग की अपेक्षा ( इच्छा ) जगी ।
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( ५ ) अपने कर्तव्य में परायण ऐसे उन दोनों ब्राह्मण कुमारों को अपने पूर्व जन्मों का स्मरण हुआ और पूर्वभव में संयम तथा तपश्चर्या का पालन किया था यह बात उन्हें याद आई ।
( ६ ) इसलिये वे मनुष्य जीवन में दिव्य माने जाने वाले' श्रेष्ठ: काम भोगों में भी श्रासक्त न हुए और उत्पन्न हुई अपूर्व श्रद्धा से 'मोक्ष के इच्छुक वे कुंमार अपने पिता के पास आकर नम्रतापूर्वक इस प्रकार बोले
( ७ ) यह जीवन अनित्य है, जिस पर अनेक रोगादि से युक्त तथा अल्प आयुष्य वाला है । इसलिये हमको ऐसे ( संसार चढ़ाने वाले ) गृहस्थ जीवन में तनिक भी सन्तोप नहीं होता । इसलिये मुनि दीक्षा ( त्यागी जीवन ) ग्रहण करने के लिये आप से श्राक्षा मांगते हैं ।
( ८ ) यह सुनकर दुःखित उनके पिता, उन दोनों मुनि ( भावना से चारित्र शाली ) ओं के तप ( संयमी जीवन) में डालने वाला यह वचन बोले:- हे पुत्रो ! वेद के पुरुषों ने यों कहा है कि पुत्र रहित पुरुष की थी नहीं होती
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