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हरिकेशीय
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करता हूं और इसी प्रकार के यज्ञ को महर्षिजनों ने उत्तम गिना है ।
टिप्पणी- वेदकीय यज्ञ की तुलना जैन धर्म के संयम से की गई है । वेदकीय यज्ञ के अग्नि, अग्निकुंड, हविष, खुवा, खुकू, समित् तथा शांति मन्त्र ये आवश्यक अंग हैं ।
(४५) (फिर उन ब्राह्मणों ने प्रश्न किया कि हे मुनि !) शुद्धि के लिये तुम्हारा स्नान करने का हृद ( कुण्ड ) कौनसा है ? तुम्हारा शांतितीर्थ कौनसा है ? और कहां पर स्नान कर कर्मर को साफ करते हो, सो कहो । श्राप से हम तुम ये सब बातें जानना चाहते हैं ।
(४६) (मुनि इनका इस प्रकार उत्तर देते हैं कि हे ब्राह्मणों ! ) धर्म रूपी हृद (कुण्ड ) है । ब्रह्मचर्य रूपी शान्तितीर्थ है । आत्मा के (प्रसन्न भाव सहित ) विशुद्ध धर्म के कुण्ड में स्नान कर मैं कर्मरज को साफ करता हूं ।
(४७) ऐसा ही स्नान सुज्ञ पुरुषों ने किया है और महा ऋषियों ने भी इसी महास्नान की प्रशंसा की है । यह ऐसा स्नान है कि जिसको करके पवित्र महर्षियों ने निर्मल ( कर्म सहित ) होकर उत्तम स्थान (मुक्ति) की प्राप्ति की है । टिप्पणी-चारित्र की चिनगारी से ही हृदय परिवर्तन होता है। जहां चारित्र की सुवास महँकती है वहां की मलिन वृत्तियां नष्ट हो जाती हैं और वह प्रबल विरोधियों को भी क्षण मात्र में अपना सेवक बना लेती हैं । ज्ञान के मन्दिर चारित्र के नन्दन वन से ही शोभित होते हैं । जाति तथा कार्य में ऊंच नीच भाव चारित्र के स्वच्छ प्रवाह में