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द्रम पत्रक
वृक्ष का पत्ता
१० निस तरह वृक्ष का पका पीला पत्ता झड़ जाता है
। उसी तरह यह शरीर भी जीर्ण होकर खिर जाता है। अनंत संसार में श्रमपूर्वक उन्नति करते २ यह मानव देह मिलती है। उसको प्राप्त करने के बाद भी सुन्दर साधन, (अंगों की पूर्णता ) आर्यभूमि, और सच्चा धर्म ये सब संयोग बड़ी ही कठिनता से मिलते है । भोग भोगने की अतृप्त वृत्ति तो प्रत्येक जन्म में प्राप्त शरीरद्वारा सब को रहा ही करती है। इसलिये इस छोटी सी आयु में, थोड़े से ही प्रयत्न करने से साध्य होने वाले सद्धर्म को क्यों न आराधे ? ।
प्रमाद यह रोग है । प्रमाद ही दुःख है। प्रमाद को छोड़कर 'पुरुषार्थ करना यही अमृत है, जिसको पीकर फिर मृत्यु नहीं
आती। जन्ममरण की परंपरा का वहीं अन्त पाता है और तभी सच्चा सुख मिलता है।
गौतम को लक्ष्य करके भगवान बोले(१) पीला जीर्ण ( पका) पत्ता जिस तरह रात्रिसमूहों, के व्य