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इक्क कन्त मरिजाइ नारि चुक्कइ आभरणह घटजुअलं अवहारि नारि बोली नीझरणह ।
पयडिय विहवा सद्द सयल मङ्गल टालिजइ मानभंग तस होइ देहढुब्बयणे डझइ । एतला दंड इकसिरि पडइ अनइ धन जाइ नरिंदघरि कुमर नरिंद रुवन्तीअह लच्छी मुक्कि पसाउ करि॥२१९॥' सकलकवीनां सहस्रटङ्कप्रदानम् ।
चन्दि दीवउ धरणि पल्लंक तृण पूलक संघरइ ईट खंडउ ससि दीज्जइ । महघरि प्रिय न पाहुणउ सज्जण न बारि बइह तुज्झ पसाइं रंडपण एह अवत्था दिट्ठ॥२२०॥
मृतधनं मुक्तम् । एकदा द्वादशावर्त्तवन्दनकदानावसरे कुमारपालभूपालपृष्ठं क्षामणकवेलायां श्रीहेमाचार्ये करेण स्पृशति गागिलचारणोक्तिः
हेम तुहारा करमरुं जाह अनंती ऋद्धि । ए चाप्या नींचामुहा तांह ऊपहरि सिद्धि ॥२२१॥
करकटकप्रदानम्। तथा शालामुखपोतिकाचिन्ताकारिसमरसिंहधार्मिकपञ्चशताश्वश्रेणी सरसि पानीयपानार्थं गच्छन्तीं दृष्ट्वा हट्टोपविष्टचारणेनोक्तम्
भल्लउं पारिसनाथ जइ एहवउं जाइसि।सहसिइ सेवडसाथ कुमरनरिंदह बाहिरउ ॥ २२२ ॥
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