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है भोगभूमिमें नहीं। यदि यहांपर भी यह शंका हो कि ऐसा क्यों ! उसका समाधान यह है कि भोगभू-१४ 5 मिके मनुष्योंमें यद्यपि ज्ञान दर्शन होते हैं परंतु उनके सदा अविरत भोगरूप परिणाम रहते हैं इसलिये
उनके चारित्र नहीं होता । यहाँपर इस वातकी शंका उठती है कि जहांपर तीन प्रकारके मोक्षमार्गकी ६ प्रवृचि है वे कर्मभूमियां कौन हैं ? इसलिये सूत्रकार उन कर्मभूमियों के प्रतिपादन करनेकेलिये सूत्र , कहते हैं- .
.. भरतैरावतविदेहाः कर्मभूमयोऽन्यत्र देवकुरूत्तरकुरुभ्यः॥ ३७॥ ... ___ 'पांच भरत, पांच ऐरावत और देवकुरु तथा उत्तरकुरु क्षेत्रको छोडकर पांच विदेह इसप्रकार पंद्रह। 12 कर्मभूमियां हैं। शंका
• कर्मभूमय इति विशेषणानुपपत्तिः सर्वत्र कर्मणो व्यापारात ॥१॥
नवा प्रकृष्टशुभाशुभकर्मोपार्जननिर्जराधिष्ठानोपपत्तेः॥२॥ ज्ञानावरण आदि आठौं काँका बंध और उसके फलोंका अनुभव समस्त मनुष्यक्षेत्रों में साधारण ! हूँ रूपसे है इसलिए भरत ऐरावत और विदेह क्षेत्रोंकी प्रधानतासे कर्मभूमि विशेषण नहीं दियाजा सकता हूँ किंतु सब ही मनुष्यक्षेत्रोंको कर्मभूमि कहना चाहिये ? सो ठीक नहीं। सर्वार्थसिद्धिक सुखको प्राप्त कराने
वाला और तीर्थकरपनेकी महान ऋद्धिको प्रदान करनेवाला प्रकृष्ट शुभकर्म कर्मभूमिके भीतर ही उपा
जन किया जाता है एवं कलंकल पृथिवीके अत्यंत क्रूर दुःखको देनेवाला, अप्रतिष्ठान नामक सातवें 8 नरकके पाथडेमें ले जानेवाला अशुभकर्म भी कर्मभूमिमें ही उपार्जन किया जाता है क्योंकि द्रव्य भव ।
१-कलंकल नाककी सातवीं पृथ्वी का नाम है ।
MISCLAIMERIAL