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________________ গােত सापा सन्निपातसे उत्पन्न ज्वर खासी दमा नेत्रशूल कोढ प्रमेह आदि भयंकर रोगोंसे संतप्त हैं तथापि वे अनशन | और कायक्लेश आदि तपोंसे पराङ्मुख नहीं होते एवं भयानक श्मशान पर्वतोंके शिखर गुफा दरी कंदरा II और शून्यग्राम आदि स्थान जहाँपर कि अत्यंत दुष्टं यक्ष राक्षस पिशाचों द्वारा किये गये वैताल-| १५७ रूपोंके विकार हैं, कठोर भृगालोंके शब्द और निरंतर सिंह व्याघ्र चीते हाथी वा सर्प मृगोंके शब्द | होते रहते हैं एवं चोर आदि दुष्ट जीव सदा घूमते रहते हैं, ऐसे स्थलोंमें निद्वंद्व हो तप तपते निवास 5 करते हैं वे घोरतप ऋद्धिके धारक हैं । अत्यंत भयंकर रोगसे पीडित और महाभयंकर एकांत स्थानमें | रहते भी जो मुनिगण स्वाकृत तपों योगोंकी वृद्धि में ही सदा तत्पर रहते हैं वे घोरपराक्रम ऋद्धिके धारक तथा बहुत कालसे जो अस्खलित ब्रह्मचर्यके धारक हैं और प्रकृष्ट चारित्र मोहनीयकर्मके क्षयोपशमसे | जिनके समस्त दुःस्वप्न नष्ट हो गये हैं वे घोरब्रह्मचर्य ऋद्धिके धारक हैं। . मनोबल वचनवल और कायबलके भेदसे वलाई तीन प्रकार है। उनमें मनःश्रुतावरण और |वीयांतराय कर्मोंके क्षयोशमकी प्रकर्षतासे अंतर्मुहूर्तकालमें ही जिनके समस्त श्रुतज्ञानके अर्थकी चिंत | वन करनेकी सामर्थ्य हो, वे मनोबल नामक ऋद्धिके धारक हैं । मन और जिह्वाश्रुतावरण एवं वीयांत18| राय कर्मके क्षयोपशमकी प्रकर्षता रहनेपर अंतर्मुहूर्त कालमें ही जिनके समस्त श्रुतज्ञांनके उच्चारण || || करनेकी सामर्थ्य प्रकट हो जाय एवं सदा ऊंचे स्वरसे उच्चारण करनेपर भी अंभरहित और वलवान है कण्ठके धारक रहें वे वचनबल नाम ऋद्धिधारी हैं। वीयांतराय कर्मके क्षयोपशमसे जायमान असाधारण द है कायबलके प्रकट होनेपर एक मास चार मास और एक वर्ष आदिके प्रतिमा योगके धारण करनेपर भी जो मुनिगण परिश्रम और क्लेशसे रहित हैं वे कायबल नामक ऋद्धिके धारक हैं। Scies-MERIALSOTRESSISBNESHSASR एESHBANSFERRORENASIRSADA ९५७ १२१
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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