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________________ है ईशित्व नामकी ऋद्धि है। देव मनुष्य और दानव आदि समस्त जीवोंके वश करनेकी सामर्थ्यका होना विशित्व नामकी ऋद्धि है । पर्वतके मध्यभागमें आकाशके समान चलना ठहरना अप्रतीपात नामको ऋद्धि है । अदृश्य होनेकी सामर्थ्यका होना अंतर्धान नामकी ऋद्धि है एवं एक साथ अनेक आकाररूप 8] परिणत होनेकी सामर्थ्यका होना कामरूपित्व नामकी ऋद्धि है। र उग्रतप ऋद्धि १ दीप्तता ऋद्धि २ तप्ततप ऋद्धि ३ महातप ऋद्धि ४ घोरतप ऋद्धि ५घोरपराक्रम-15 तप ऋद्धि ६ और घोरब्रह्मचर्यतप ऋद्धि ७ ये सात तप ऋद्धियां हैं। एक उपवास दो उपवास तीन उप वास चार उपवास पांच उपवास तथा पक्ष मास आदिका उपवास रूप योगों से किसी एक योगके आरंभ है कर लेनेपर मरण पर्यंत उस योगसे विचलित न होना अर्थात् उपवास और पारणाओंमें किसी प्रकारकी | । कमिताईका न होना ऐसी सामर्थ्य के धारक मुनिगण उग्रतप ऋद्धि के धारक माने जाते हैं। महोपवासोंके करनेपर भी जिनके शरीर वचन और मनका वल सदा वृद्धिंगत ही रहता है घटना नहीं, मुख दुगंधि रहित रहता है, कमलपत्रकासा सुगंधित निश्वास निकलता है और जिनका शरीर सदा कांतिमान र रहता है वे दीप्ततप ऋद्धिके धारक कहे जाते हैं । तप्त लोहे की कढाईमें गिरे हुए जलके कणके समान जिनका खाया हुआ अल्प आहार तत्काल सूख जाता है, मल रुधिर आदि स्वरूप परिणत नहीं होता वेतप्ततप नामक ऋद्धिके धारक हैं। जो मुनिगण सिंह निष्फीडित आदि महोपवासके आचरण करनेवाले हैं वे महातप नामकी ऋद्धिके धारक हैं। जिन मुनियों का शरीर यद्यपि वात पित्त और कफके १हरिवंशपुराणमें जहापर उपवास प्रकरण लिखा गया है वहांपर सिंहनिक्रीडित रत्नावलो मुस्तावली आदि महो पचासोंका सयंत्रक विस्तारसे वर्णन किया गया है वहां देख लेना चाहिये। SONBCNBCNORITURE
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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