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________________ अम्पायु SPEPPERSON । ये तीन भेद हैं। उनमें असि १.मपि २ कृषि ३ विद्या " शिल्प ५ और वाणिज्य ६ कार्य करनेसे सावध कर्मायाँके छह भेद हैं। . . मापा जो पुरुष तलवार और धनुष आदिके प्रहार करनेमें समर्थ हैं वे असिकर्मार्य हैं। जो द्रब्यके आय | व्यय (जमा खर्च) आदिके लिखने में प्रवीण हैं वे मषिकार्य हैं । हल कुलिश (खुरपा सरखिा) दांता आदि । खाके सहायी पदार्थोंकी विधिक जानकार किसान कृषि कार्य हैं। अच्छी तरह लिखना और गणित | आदि बहचर कलाओं में जो कुशल हों वे विद्याकार्य हैं। धोबी नाई लुहार कुंभार और सुनार आदि जो चारो वर्णों के मनुष्य हैं वे शिल्पकार्य है तथा चन्दनादि गंध, घृत आदि रस, चावल आदि || | धान्य कपास आदिके बने वस्त्र एवं मुक्ता आदि नाना प्रकार पदार्थों के संग्रह करनेवाले बहुत प्रकारके | | वणिकार्य है। ये छहौ प्रकारके आर्य अविरति प्रवण है-जीवोंको बचा न कर कार्य करनेवाले हैं इस लिये सावधकार्य हैं। पंचमगुणस्थान वर्ती श्रावक अल्पसावद्यकार्य हैं क्योंकि उनके परिणाम रति | विरतिरूप दोनों प्रकारके होते हैं अर्थात् वे एकदेश चारित्रका पालन करनेवाले होते हैं इसलिये वे स्थूल | रूपसे हिंसाके त्यागी हैं। तथा असावद्य कार्य संयमी मुनि हैं क्योंकि सदा उनके परिणमोंमें कोंके | समूल क्षयकी भावना उदीयमान रहती है एवं तदनुसार इनके परिणामोंमें सदा जीवोंकी हिंसाका विरति | | रूप परिणाम रहता है। अभिगतचारित्रार्य और अनभिगत चारित्रार्यके भेदसे चारित्रार्य दो प्रकारके हैं ये दोनों मेद I वाह्य अनुपदेश और उपदेशकी अपेक्षासे जायमान हैं। उनमें जो महानुभाव चारित्रमोहनीय कर्मके || IPI उपशमसे वा क्षयसे वाह्य उपदेशकी कुछ भी अपेक्षा नहीं करते, आत्माकी निर्मलतासे ही जो चारित्र BEEGAONORMERICACEBOOPERE A Kान १२०.
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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