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________________ अम्बाक SESCORRORECASASTRA . ..भरतैरावतविभाजिनाविष्वाकारगिरी ॥७॥ है भरत और ऐरावत दोनों क्षेत्रोंके विभाग करनेवाले दो इष्वाकार पर्वत हैं। ये अपने दोनों अंतोंसे कालोदघि और लवणोदधिका स्पर्श करनेवाले हैं। एकसौ योजन गहरे हैं। चारसौ योजनप्रमाण ऊंचे * हैं। नीचे ऊपर एक हजार योजन चौडे हैं और सुवर्णमयी है। इस धातकीखंड द्वीपमें दो मेरुपर्वत हैं। ये मेरुपर्वत पूर्व और पश्चिम भागमें हैं। एक हजार योजन * प्रमाण नीचे जमीनमें गहरे हैं । मूलभागमें पिचानवैसौ योजन चौडे हैं। पृथ्वीतल पर चौरानवेसी योजनप्रमाण चौडे हैं। चौरासी हजार योजन ऊंचे हैं। ऊपस्तलमें एक हजार योजनप्रमाण विस्तृत हैं है एवं पहिले जो मेरुपर्वतके भूतलका प्रमाण बतला आए हैं उतने हीप्रमाणके धारक हैं। .. १. भूमिके समतलभागसे पांचसो योजनकी ऊंचाई पर नंदन वन है जो कि पांचसौ योजन प्रमाण चौडा है। वहांसे पचपन इजार पांचसौ योजनकी ऊंचाई पर सौमनस वन है और वह पांचसौ योजन प्रमाण चौडा है। तथा उससे अट्ठाईस हजार योजनकी ऊंचाई पर पांडुक वन है और वह चारसौ चौरा: नवे योजन चौडा है। दोनों मेरुपर्वतोंपर दश प्रदेश चढने पर एक प्रदेशकी वृद्धि है अर्थात् यदि दश प्रदेश ऊपर ₹ चढा जायगा तो एक प्रदेशकी वृद्धि होगी और यदि नीचे की ओर उतरा जायगा तो दश प्रदेश प्रमाण १ यह पाठ परिशोधित राजवातिकके आधारसे लिखा गया है मूळ पुस्तकमें यह पाठ नहीं और न स्वर्गीय पं. पन्नालालनी दूनीवालोंने लिखा है। * धातकी खंड द्वीपमें भद्रशास वनका विस्तार एक हजार दोसौ पच्चीस योजना और इसकी लम्बाई एक लाख सात हजार आठसौ उनासी योजन-प्रमाण है। हरिवंशपुराण ।। ANSWARACHERRORISTI
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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