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भाषा
BASAHE
वर्षाद्वर्षश्चतुर्गुणविस्तार आविदेहात ॥५॥ । क्षेत्रसे क्षेत्रका विदेहक्षेत्रपर्यंत चौगुना विस्तार समझ लेना चाहिये । अर्थात-भरतक्षेत्रको अपेक्षा | हेमवतक्षेत्रका विस्तार चौगुना है। हैमवतकी अपेक्षा हरिवर्षका चौगुना है। हरिवर्ष की अपेक्षा विदेह
क्षेत्रका चौगुना विस्तार है। तथा भरतक्षेत्रके समान ऐरावतक्षेत्रका विस्तार है। ऐरावतक्षेत्र चौगुना विस्तार हैरण्यवतक्षेत्रका है और हरण्यवतसे चौगुना विस्तार रम्यक्क्षेत्रका है। . | धातकीखंडके वलयभागकी चौडाई चार लाख योजनप्रमाण है। उसकी परिधि इकतालीस लाख || दश हजार नवसौ और कुछ कम इकसठ योजनप्रमाण है। घातकीखंड द्वीपमें पर्वतोद्वारा रुका क्षेत्र | एक लाख अठहत्तर हजार आठसौ चालीस योजनप्रमाण है। उसकी परिधिको कम कर जो अवशिष्ट रहे उसमें दोसौ बारहका भाग देने पर जो लब्ध हो उतना ही प्रमाण भरतक्षेत्रकी (वाह्य)चौडाई
वर्षाणां वर्षधराणां सरितां वृत्तवेदाढ्यानां हृदानामन्येषां च तान्येवावगहादीनि ॥६॥ M. वर्षधर शब्दका अर्थ हिमवान महाहिमवान आदि पर्वत है। धातकीखंड द्वीपमें उनकी ऊंचाई और गहराई तो जंबूद्वीपके ही समान है। विस्तार दूना है। चार वृत्तवेदान्य हैं उनकी ऊंचाई और गहराई जंबूद्वीपमें जो कही गई है वही है और चौडाई दो हजार योजनप्रमाण है। दो यमकाद्री हैं उनकी ऊंचाई
और गहराई जो पहिले वर्णन कर दी गई है वही है और चौडाई मूलमें दो हजार योजन, मध्यमें | पंद्रहसौ योजन और ऊपर एक हजार योजनप्रमाण है । कांचन पर्वतोंकी ऊंचाई और गहराई जो ऊपर || कही गई है.वही धातकीखंडमें है और चौडाई दूनी दूनी है। पद्म आदि छहो सरोवर दनी दूनी लंबाई है चौडाई और गहराईके धारक हैं। द्वीप और कमल दूने दूने लंबे चौडे और गहरे हैं।'
१-हरिवंशपुराणमें व्यालीस पाठ है। : ' ,
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