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अध्यार
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कहा गया भी अर्थ है और 'पूर्वाः पूर्वगा के साथ संबंध करने पर जो अर्थ किया गया है वह भी अर्थ है है। इसलिए कोई दोष नहीं ॥२१॥
दो दो नदियोंमें पहिली पहिली नदियोंके दिशाओंका विभाग तो वतला दिया गया, अव शेष नदियोंके दिशाओंका विभाग बतलानेकेलिए सूत्रकार सूत्र कहते हैं
शेषास्त्वपरगाः॥२२॥ तथा शेषकी सात नदियां अर्थात् सिंधू रोहितास्या हरिकांता सीतोदा नरकांता रूप्यकूला और रक्तोदा ये सात नदियां पश्चिमके समुद्र में जाकर मिलती हैं । अर्थात् लवण समुद्रके पश्चिम भागमें मिलती है।
गंगा सिंधू रोहित रोहितास्या आदि जोडोंमें जो उचर उत्तरकी नदियां हैं वे पश्रिम समुद्र में 1 जाकर मिली हैं।
तत्र पद्महदप्रभवा पूर्वतोरणद्वारनिर्गता गंगा ॥१॥ क्षुद्र हिमवान पर्वतके ऊपर चार तोरण द्वारोंसे शोभायमान पद्म नामका सरोवर है । इस पद्म ६ सरोवरके पूर्वतोरण द्वारसे गंगा नदीका उदय हुआ है। इस गंगा नदीने पांचौ योजन पूर्व दिशाका % ओर जाकर अपने विपुल प्रवाहसे गंगा कूटका स्पर्श किया है । पीछे पांचसौ तेईस योजन और ,
एक योजनके उन्नीस भागोंमें छह भाग प्रमाण दक्षिणकी ओर जाकर स्थूल मोतियोंकी मालाके है समान हो गई है । कुछ अधिक सौ योजन प्रमाण धाराका पतन हो निकला है। एक कोश छह १ १०२. * योजन चोडी और आधे योजन मोटो होगई है । तथा इसी आकारसे यह गंगा (वज्रमुख) कुंडमें
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