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________________ JIN.J. -. -. SA ' १० CREDIT R AJGABANDHAR उज्ज्वलकूट ८ ये आठ कूट हैं । इन आठो ही कूटोंकी रचना गंधमादन वक्षारपर्वत के कूटों के समान है। इनमें कनककूटके ऊपर प्रासादमें सुबत्सा नामकी दिक्कुमारीका निवासस्थान है । कांवनकूट के प्रासादमें 5 वत्समित्रा नामकी दिक्कुमारीका निवासस्थान है। बाकी के कूटों में अपने अपने कूट के नामधारी देवों का निवासस्थान है। ___मेरु पर्वतके दक्षिणपश्चिम भागमें निषधाचलसे उचर और पद्मावत देशसे पूकी ओर विद्युतम नामका वक्षारगिरि (गजदंत) है। यह तपे हुए सुवर्ण के समान रंगवाला और गंधमादन वक्षारपति के समान परिमाणवाला है। इस विद्युत्लभ वक्षारपर्वत के जार मेरु पर्वतके समीपमें भगवान अईतके मंदिर से शोभायमान सिद्धायतनकूर है। उस सिद्धायतनकूट के दक्षिण भागों कासे विद्युमभकूट १ देवकुरुकूट २ पद्मावतविषयकूट ३ अपरविदेहकूट ४ खस्ति ककूर ५शतजालकूट ६ शीतोदाकूट और हरि. कूट ८ ये आठ कूट हैं तथा जिसप्रकार गंधमादन वक्षार पर्वतके कूटों की रचना बतला आए हैं उसीप्रकार इन कूटोंका भी रचना समझ लेनी चाहिये। इन कूटों में पद्मावतविषयकूटके ऊपरके प्रासादमें वारिषेणा नामकी दिक्कुमारीका निवासस्थान है। स्वस्तिककूटके कारके प्रासादमें वला नामकी दिक्कुमारीके रहनेका स्थान है इनके सिवाय जो अवशिष्ट कूट हैं उनमें अपने अपने कूटोंके नामधारी देवगग निवासी करते हैं। __मेरु पर्वतसे दक्षिण, सौमनससे पश्चिम, निषघाचलसे उत्तर, विद्युत्लभसे पूर्व देवकुरु भोगभूमि है। उत्तरकुरु भोगभूमिमें जिसप्रकार प्रत्यंचा, धनुःपृष्ठ और वाणका परिमाण है उसीमकार देवकुरुमें भी समझ लेना चाहिये। मेरुसे दक्षिणपश्चिम दिशामें निषधाचलसे उत्तर, सीतोदा महानदीसे पश्चिम SPORTLOGIX Regtesso SRSRITGII BUTORIES
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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