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उ०रा०
भाषा
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उत्तरकुरुद से दक्षिणकी ओर पांचसौ योजन के बाद एक चंद्र नामका सरोवर है । उसमें चंद्र नामका नागेंद्रकुमार निवास करता है । पहिले के समान इस चंद्र के भी पूर्व और पश्चिम भागमें दश दश कांचन पर्वत हैं और उनका कुल वर्णन उपर्युक्त कांचन पर्वतोंके समान है । चंद्रद्रहसे दक्षिणकी ओर पांचसौ योजन के बाद ऐरावतहूद है और उसमें ऐरावत नामके नागेंद्रकुमारका निवासस्थान है । इसके भी पूर्व और पश्चिम भागमें दश दश कांचन पर्वत हैं और उनका कुल वर्णन उपर्युक्त कांचन पर्वतों सरीखा ही है । ऐरावतहूदते दक्षिणकी ओर पांचसौ योजन तिर्यक् जाने के बाद माल्यवान नामका हूद है । उसमें माल्यवान नामका नागेंद्रकुमार रहता है। इसके भी पूर्व और पश्चिम भाग में दश दश कांचन पर्वत हैं और उनका स्वरूप पूर्वोक्त कांचन पर्वतों के समान है इसप्रकार सब हूदों के मिला कर यहां सौ काँचन पर्वत होते हैं। प्रत्येक कांचन पर्वतकी पूर्व दिशा में एक एक जिनमंदिर है इसप्रकार सौ कांचन पर्वतोंपर सौ जिनमंदिर हैं।
मेरु पर्वतको दक्षिण और पूर्व दिशा में मंगलावत (ती ) देश से पश्चिम और निषधाचलसे उत्तरकी ओर सौमनस नामका वक्षारगिरि ( गजदंत ) है । यह सौमनस वक्षारगिरि सर्वत्र स्फटिकमणिमयी है। गंधमादन वक्षारगिरिकी जो चौडाई ऊंचाई गहराई और रचना ऊपर कह आए हैं उसीप्रकार इस सौमनस वक्षारगिरिकी है । इस सौमनस वक्षारगिरिके ऊपर मेरु के समीप सिद्धायतन नामका एक कूट है । उसका परिमाण पूर्वोक्त सिद्धायतनकूट के समान ही है । इसके ऊपर एक भगवान अर्हतका मंदिर है जिससे यह अत्यंत शोभायमान जान पडता है । इस सिद्धायतनकूट की दक्षिण दिशा में क्रम से सौमनसकूट १ देवकुरुकूट २ मंगलावत्कूट ३ पूर्वविदेहकूट ४ कनककूट ५ कांचनकूट ६ विशिष्टकूट ७ और
गान
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