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________________ ) विदेद्दोंकी कल्पना की गई है इसलिये शंकाकारका कहना ठीक नहीं है। इसलिये मेरुसे पूर्व भाग में रहने से पूर्वविदेह, पश्चिम आदि भागों में रहने से पश्चिम विदेह आदि जो नाम उपर कहे गये हैं वे यथार्थ हैं । विदेहक्षेत्रके ठीक मध्यभाग में मेरु पर्वत है। इस मेरु पर्वतसे पश्चिम उत्तर दिशामें गंधमालिनी देश के समीप देवारण्य नामका वन है । उसके पूर्व की ओर गंधमादन नामका वक्षार पर्वत है जो गजदंत भी कहा जाता है । यह वक्षार पर्वत उत्तर दक्षिण लंवा और पूर्व पश्चिम चौडा है । अपनी दक्षिण कोटि मेरुका स्पर्श करता है और उत्तर कोटिसे नीलाचलको स्पर्शता है। आधे योजन चौडे पर्वत (अपने ही ) समान लंबे दो वनखंडोंसे शोभायमान है । और नीचे वोचमें और ऊपर सब जगह सुवर्णमयी है । यह वक्षार पर्वत नीलाचल तक चार सौ योजन ऊंचा है। सौ योजन जमीन में गहरा है । प्रदेशों की बढवारीसे बढता बढता मेरु पर्वत के समीप में पांचसौ योजन ऊंचा, सवासौ - १२५ योजन गहरा और ' पांचसौ योजन चौडा है । पीछे प्रदेशों की हानिसे घटता नीलाचल पर्वत के पास ढाई सौ योजन चौडा एवं तीस हजार दोसौ नौ योजन और एक योजनके उन्नीस भागों में छइ भाग कुछ अधिक लंबा है । इस गंधमादन वक्षार पर्वत के ऊपर मेरु पर्वत के समीप एकसौ पच्चीस १२५ योजन ऊंत्रा और सवासी - १२५ योजन मूलमें चौडा एक सिद्धायतन नामका कूट है। इस गंधमादनकूट के उत्तर भाग में क्रम से गंधमादनकूट १ उदक्कुरुकूट २ गंधमालिनीकूट ३ स्फटिककूट ४ लोहिताक्षकूट ५ और आनंदकूट ६ छह कूट विद्यमान हैं । सिद्धायतनकूट पर एक जिनमंदिर है । स्फटिककूट पर एक मदा मनोहर विशाल प्रासाद बना हुआ है और उसमें एक पल्यकी आयुकी धारक भोगंधरी नामकी देवी निवास करती है । लोहिताक्ष F अध्याय ३ વાર
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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