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________________ ACLCLICORRENTORREGUSIR तन्मध्ये मेरुनाभिर्वृत्तो योजनशतसहस्रविष्कंभो जंबूद्वीपः ॥६॥ उन सब द्वीप समुद्रोंके बीचमें, जिसके मध्यमें नाभिक समान सुमेरु पर्वत है ऐसा एवं गोलाकार B और एक लाख योजन विष्कंभवाला जंबूद्वीप है। तच्छब्दः पूर्वीपसमुद्रानेर्देशार्थः॥१॥ तन्मध्ये यहाँपर जो तत् शब्दका उल्लेख है वह पहिले कहे गये असंख्याते दीप समुद्रोंके ग्रहणार्थ हूँ है। 'तेषां मध्ये तन्मध्ये' अर्थात् उन समस्त द्वीप और समुद्रोंके मध्यमें। 'मेरु भिर्यस्य स मेरुनाभिः' है अर्थात् नाभिके समान अपने मध्यभागमें सुमेरु पर्वतका धारक, सूर्यमंडलके समान गोल, शतानां सहस्त्रं शतसहस्र, योजनानां शतमात्रं योजनशतसहस्रं विष्कभो यस्य सोऽयं योजनशतसहस्रविष्कभः अर्थात एक लाख योजन चौडा जंबूद्धोप है । उस जंबूद्वीपकी परिधि (परकोट) तीन लाख सोलह हजार दो सौ सचाईस योजन, तीन कोश, एकसौ अट्ठाईस धनुष, साढे तेरह अंगुल कुछ अधिक है। उसे चारो ओरसे बेडे हुए एक जगती अर्थात् वेदी है जो आधा योजन नीचे जमीनमें गहरी है, आठ योजन हूँ ऊंची है, मूलमें बारह योजन, मध्यमें आठ योजन और अंतमें चार योजन चौडी है । वह मूलभागमें हूँ है वज्रमयी है। शिखर पर वैडूर्यमणिमयी है और मध्यभागमें सर्वरत्नमयी है । तथा १ गवाक्ष (झरोखे) है है जाल २ घंटाजाल ३ मुक्ताफलजाल ४ सुवर्णजाल ५ मणिजाल ६ क्षुद्रघंटिकाजाल ७ पद्मरत्नजाल है * सर्वरत्नजाल ९ ये नव उत्तमोचम ऊपर ऊपर स्थित जालोंसे अत्यंत शोभित है । जाल नाम झरोखोंका है ये गवाक्षजाल-झरोखे, प्रत्येक आधा आधा योजन ऊंचा और पांचसौ धनुष चौडा तथा जगतीके ५ समान लम्बे है। SPECICICICIETIECERCESCRECICEKANGRESS ८५२
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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