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________________ अध्यान और एक सागरके पांच भागोंमें तीन भाग है । उत्कृष्टस्थिति सत्रह सागरकी है। अजघन्योत्कृष्ट मध्यमस्थिति समयोत्तर है। छठे नरकमें तीन पाथडे बतलाए है। उनमें पहिले पाथडेमें जघन्यस्थिति सत्रह सागरकी है। उत्कृष्टस्थिति अठारह सागर और एक सागरके तीन भागोंमें दो भाग है । अजघन्योत्कृष्ट मध्यम स्थिति समयोचर है । दूसरे पाथडेमें नारकियोंकी जघन्यस्थिति अठारह सागर और एक सागरके तीन भागोंमें दो भाग है । उत्कृष्टस्थिति बीस सागर और एक सागरके तीन भागोंमें एक भाग है। अजय न्योत्कृष्ट मध्यमस्थिति समयोचर है। तीसरे पाथडेमें जघन्यस्थिति बीस सागर और एक सागरके तीन भागोंमें एक भाग है । उत्कृष्टस्थिति बाईस सागर है। अजघन्योत्कृष्ट मध्यमस्थिति समयोचर है।। सातवें नरकमें एक अप्रतिष्ठान नामका पाथडा बतलाया गया है उसमें जघन्य आयु बाईस है। सागर और उत्कृष्ट तेतीस सागरकी है अजघन्योत्कृष्ट समयोचर है। रत्नप्रभा आदि नरकोंमें रहनेवाले नारकियोंकी उत्पत्तिका विरहकाल इसप्रकार है समस्त पृथिवियोंमें नारकियोंका जघन्य विरहकाल एक समयमात्र है और उत्कृष्ट विरहकाल, रत्नप्रभा आदि सातो भूमियोंमें क्रमसे चौबीस मुहूर्त, सात रातदिन, एक पक्ष, एकमास, दो मास, चार मास और छह मासका है। अर्थात्-प्रथम रत्नप्रभा नरकम तो एक नारकीके मर जानेपर दूमरे नारकीके उत्पन्न होने में अंतर चौबीस मुहूर्तका है। दूसरे नरकमें सात दिनका, तीसरेमें पंद्रह दिनका, चौथेमें है एक मासका, पांचवेंमें दो मासका, छठेमें चार मासका और सातवेंमें छह मासका है। अधिकसे अधिक तु इतने अंतर बाद एकके मर जानेपर दूसरा नारकी उत्पन्न हो ही जाता है । किस किस नरकमें कौन .५ कौन जीव जाते हैं ? उसका प्रकार इसप्रकार है UWACHECREERIESCIENCIECREACHESTECREGIONETISGARH
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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