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________________ बु०रा० भाषा ८२५ स्थिति आठ सागर और एक सागरके सात भागों में दो भाग है । उत्कृष्ट स्थिति आठ सागर और एक सागर के सात भागों में पांच भाग है। अजघन्योत्कृष्ट मध्यमस्थिति समयोचर है। पांचवें पाथडे में नारकियोंकी जघन्यस्थिति ओठ सागर और एक सागरके सात भागों में पांच भाग है । उत्कृष्टस्थिति नौ सागर और एक सागर के सात भागों में एक भाग है । अजघन्योत्कृष्ट मध्यमस्थिति समयोचर है । छठे पाथडे में नारकियोंकी जघन्यस्थिति नौ सागर और एक सागरके सात भागों में एक भाग है । उत्कृष्टस्थिति नौ सागर और एक सागरके सात भागों में चार भाग है । अजघन्योत्कृष्ट मध्यमस्थिति समयोत्तर है । सातवें पाथडे में नारकियोंकी जघन्यस्थिति नौ सागर और एक सागर के सात भागों में चार भाग है । उत्कृष्टस्थिति दश सागरकी है । अजघन्योत्कृष्ट मध्यमस्थिति समयोत्तर है। पांचवें नरकमें पांच पाथडे कह आए हैं । उनमें प्रथम पाथडे में नारकियोंकी जघन्य आयु दश सागरकी है । उत्कृष्ट ग्यारह सागर और एक सागरके पांच भागों में दो भाग है । अजघन्योत्कृष्ट मध्यमस्थिति समयोत्तर है । दूमरे पाथडे में जघन्यस्थिति ग्यारह सागर और एक सागर के पांच भागों में दो भाग है । उत्कृष्टस्थिति वारइ सागर और एक सागर के पांच भागों में चार भाग हैं। अजघन्योत्कृष्ट स्थिति समयोचर है । तीसरे पाथडे में नारकियों की जघन्यस्थिति बारह सागर और एक सागर के पांच | भागों में चार भाग है । उत्कृष्टस्थिति चौदह सागर और एक सागर के पांच भागों में एक भाग है। अजधन्योत्कृष्ट स्थिति समयोत्तर है। चौथे पाथडे में नारकियोंकी जघन्यस्थिति चौदह सागर और एक सागर के पांच भागों में एक भाग है। उत्कृष्टस्थिति पंद्रह सागर और एक सागरके पांच भागों में तीन भाग है अजघन्योत्कृष्ट स्थिति समयोचर है । पांचवें पाथडे में नारकियों की जघन्पस्थिति पंद्रह सागर अध्याय ३ ८२५
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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