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________________ जहाँपर एक अधिकरण रहता है वहींपर व्याकरण शास्त्रमें पुंवद्भावका विधान माना गया है । | किंतु जहांपर भिन्न भिन्न अधिकरण होते हैं वहांपर पुद्धावका विधान नहीं माना। एकत्रिसप्तेत्यादि अध्याय स्थलपर एकशब्द भिन्नाधिकरण है इसलिये स्त्रीलिंग होना चाहिये और तब एकात्रिसप्तेत्यादिरूपसे ही सूत्रमें उल्लेख होना चाहिये नकि एकत्रिसप्रेत्यादि पुंवद्धावविशिष्ट उल्लेख होना चाहिये । सो ठीक है नहीं। एक शब्दका यहांपर पुंवद्धाव नहीं हुआ है किंतु एकस्याः क्षीरं एकक्षीरं यहां पर जिस प्रकार है| एका शब्दको उत्तरपदके परे रहते हस्व हो जाता है उसीप्रकार ह्रस्व हो गया है । अथवा जिसकी उपमा सागरके साथ हो वह सागरोपम कहा जाता है यह सागरोपम शब्द आयुका विशेषण है । ऐसी अवस्थामें एक च त्रीणि च सप्त च दश च सप्तदश च द्वाविंशतिश्च त्रयस्त्रिंशच एक त्रिसप्तदशसप्तदशद्वाविंशतित्रयस्त्रिंशत् । एकत्रिसप्तदशसप्तदशद्वाविंशतित्रयस्त्रिंशत्सागरोपममायुर्यस्याः 18| सैकत्रिसप्तदशसप्तदशद्वाविंशतित्रयस्त्रिंशत्सागरोपमा, यह यहां पर समासका प्रकार है । यहांपर एकं | चेत्यादि समासमें नपुंसकलिंगक एक शब्दका प्रयोग रहनेसे पुंवद्भावकी आशंका नहीं है सूत्रमें स्थिति | शब्द स्त्रीलिंग है इसलिये उसकी अपेक्षा 'सागरोपमा' यह यहां स्त्रीलिंगका निर्देश है। रत्नप्रभादिभिरानुपूर्येण संबंधो यथाक्रमानुवृत्तेः॥ ३॥ इस सूत्रमें पूर्व सूत्रसे यथाक्रमकी अनुवृति आ रही है इसलिए एक आदिका आनुपूर्वी क्रमसे रत्नप्रभा आदिके साथ संबंध करने पर रत्नप्रभा नारकियोंकी उत्कृष्ट स्थिति एक सागर है। शर्कराप्रभामें तीन सागर, वालुकाप्रभामें सात सागर, पंकप्रभामें दश सागर, धूमप्रभामें सत्रह सागर, तमः १ पुंवद्भाषितपुंस्कादनङ्समानाधिकरणे स्त्रियामपूरणीमियादिपु । ६ । ३ । ३३ । सिद्धांतकौपदी पृष्ठ ८४ । FISSNESSURES SGRAPRADHANRAORADABADOBER
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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