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________________ PROCESCORENA- अध्याय व०रा० भाषा बान BHA%DREALCREDICAERBARDASSASHAHR तेष्वेकत्रिसप्तदशसप्तदशहाविंशतित्रयस्त्रिंशत्सागरोपमा सत्त्वानां परा स्थितिः॥६॥ ___उन नरकोंमें रहनेवाले नारकी जीवोंकी उत्कृष्ट आयु पहिले नरकमें एक सागरकी, दूसरे नरकमें तीन सागरकी, तीसरे नरकमें सात सागरकी, चौथे नरकम दश सागरकी, पांचवेमें सत्रह सागरकी, छ8में बाईस सागरकी और सातवे नरकमें तेतीस सागरकी है। सूत्रमें जो सागरोपम शब्दका उल्लेख किया गया है उसका "जिसकी उपमा सागरके साथ हो | अर्थात सागर जिस प्रकार विशाल है उसी प्रकार जो विशाल हो वह सागरोपम कहा जाता है, यह अर्थ है। 'सागरोपम' यहांपर जो उपम शब्द है उसका अर्थ वार्तिककार बतलाते है-- सागरोपमस्योपमात्वं द्रव्यभूयस्त्वात् ॥१॥ जिसप्रकार सागर बहुतसे जलसमूहसे युक्त रहता है उसी प्रकार आयु कर्मके साथ भी संसारको | धारण करनेवाले विशाल पुद्गल द्रव्यके पिंडका संबंध रहता है इसलिये सागरके समान महान् द्रव्यका धारक होनेसे आयु कमें सागरोपम कहा जाता है। एकादीनां कृतद्वंद्वानां सागरोपमाविशेषणत्वं ॥२॥ ___ एका च तिस्रश्च सप्त च दश च सप्तदश च द्वाविंशातिश्च त्रयस्त्रिंशच एकत्रिसप्तदशसप्तदशद्वावि-| शतित्रयस्त्रिंशतः, ता एव सागरोपमाः, एकत्रिसप्तदशसप्तदशद्वाविंशतित्रयात्रंशत्सागरोपमाः, इसप्रकार यहां द्वंद्वसमासविशिष्ट एक आदि शब्द सागरोपमा शब्दके विशेषण हैं । यदि यहां पर यह शंका की। जाय कि -RLDARI-TECAAAAERA ८१५
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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