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RRENEMIERS
हिमवान पर्वतके समान स्थूल भी तामेका पहाड यदि उष्णताके धारक नरकों में डाल दिया जाय तो वह देखते देखते वहीं पिघल सकता है ऐसी नरकोंमें प्रखर उष्णता है तथा वही द्रवीभूत यदि शीत - अध्याय वेदनावाले नरकोंमें डाल दिया जाय तो वह निमेषमात्रमें घनरूप हो सकता है ऐसी वहां पर विकट शीत वेदना है।
रत्नप्रभा शर्कराप्रभा वालुकाप्रभा और पंकप्रभा इन चार भूमियोंमें तो जितने नरक हैं प्रखर हूँ उष्णताके धारक हैं। पांचवीं धूमप्रभा पृथिवीमें ऊपरके भागमें दो लाख नरक उष्णतासे परिपूर्ण हैं और डू
नीचेके भोगमें एक लाख विलोंमें तीन शीत है तथा तमःप्रभा और महातम प्रभा इन छठी और सातवीं भूमियों में भी प्रचंड शीत है इसप्रकार रत्नप्रभा आदि भूमियोंमें मिलकर व्यासी लाख नरक (विले) है उष्ण वेदनासे व्याप्त हैं और शेष दो लाख विले तीव्र शीत वेदनासे परिपूर्ण हैं।
हम अपनी विक्रिया शुभ करें ऐसा विचार कर नारकी लोग अपनी विक्रिया करते हैं परंतु तीन अशुभ कर्मके उदयसे उनकी महा अशुभ विक्रिया ही बन जाती है जिससे उन्हें वडा दुःख होता है तथा जिस समय तीबदुःख सहते सहते वे असंत तप्त हो जाते हैं इसलिये उस दुःखसे छूटने की इच्छा से वे बहुतसे उपायोंको काममें लाते हैं परंतु तीब अशुभ कर्मके उदयसे वे सब उपाय उनके लिये भयंकर कष्टके कारण बन जाते हैं इसरीतिसे दीन नारकियों को प्रति समय महा कष्ट भोगना पडता है। सूत्रमें नारकियोंके जो लेश्या आदि भाव वतला आये हैं वे उचरोचर अत्यंत अशुभ अशुभ होते चले जाते हैं यह यहांपर तात्पर्य समझ लेना चाहिये ॥३॥ .
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