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________________ अध्याप SARGUAGRAH भाषा SARALCAS छयासठ धनुष दो हाथ और सोलह अंगुल है। दूसरे पाथडेमें दो सौ आठ धनुष एक हाथ और आठ अंगुल है और तीसरे पाथडे में ढाई सौ धनुष की है। . तथा सातवें. नरकम अप्रतिष्ठान नामका एक ही पाथडा कहा गया है और उसमें रहनेवाले नारकियोंके शरीरकी उंचाई पांच सौ धनुष प्रमाण है। ____ अंतरंग कारण असातावेदनीय कर्मके उदयसे और वहिरंग कारण अनादि पारिणामिक शीत और उष्णके निमित्तसे जायमान अनेक तीव्र वेदनायें नारकियोंके होती हैं कुछ स्वरूप उनका इसप्रकार है ग्रीष्म ऋतुके मध्याह्न कालमें जब कि आकाशमें मेघपटलकी सचा नहीं है उस समय जहांपर है अपनी महा तीक्ष्ण किरणोंसे सूर्यने समस्त दिशाओंका मध्यभाग व्याप्त कर रक्खा है, रंचमात्र भी IP शीत पवनका झकोरा नहीं आता किंतु दावानलके दाइके समान पवन-लूएं फकडती हैं ऐसी मरुभूमिमें जिसका शरीर चारो ओरसे जलती हुई अगिकी शिखासे व्याप्त है, जो तीन प्याससे दुःखी है और जिसका शरीर पित्तज्वरसे संतप्त है तिसपर भी जिसका कोई प्रतीकार (इलाज) नहीं हो रहा है उस * पुरुषको जिसप्रकार उष्णजनित तीव्र वेदना होती है उससे भी अनंतगुणी वेदना नारकियों को उष्ण नरकों में भोगनी पडती है। तथा____ माघ महीनेमें जिस समय बर्फके गिरनेसे चारो दिशाऐं शीतसे व्याप्त हैं, झरते हुए मेध जल से समस्त मही मंडल कीचडसे व्याप्त है उससमय रात्रिके समय बहती हुई महा ठंडी पवनसे जिसका 8| शरीर कंपरहा है और दांती बज रही है, जिसका देह शीत ज्वरसे कशित है और न जिसके लिये। 18 कोई रहनेके लिये घर है और न तनपर कपडा है ऐसे पुरुषको जिसप्रकार शीतजनित अचिंत्य कष्ट | होता है उससे भी अनंतगुण कष्ट शीत वेदनावाले नरकोंमें होता है । अथवा- . ASROSC-SeSTENEDISTRY S ASAS
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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