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वैराग्य प्राप्त हो जायगा उसी समय मोक्ष हो जायगी । संसारमें क्षणमात्र भी न ठहरनेके कारण उप9 देश आदि बन ही नहीं सकता। इस रीतिसे ज्ञान और वैराग्यकी कल्पना करने पर भी उपदेश आदि ६ का अवसर मिलना कठिन है और भी यह वात है कि
नित्यानित्यैकांतावधारणे तत्कारणासंभवः ॥ १६ ॥ ___ कथंचित् नित्य और कथंचित् अनित्य मानने पर ही ज्ञान और वैराग्य मोक्षके कारण बन सकते है हैं किंतु पदार्थ सर्वथा नित्य ही है वा अनित्य ही है इसप्रकार एकांतरूपसे हठ करनेपर ज्ञान और * वैराग्य मोक्षके कारण नहीं हो सकते । खुलासा तात्पर्य उसका यह है कि
नित्यत्वैकांतेऽपि विक्रियाभावात् ज्ञानवैराग्याभावः ॥१७॥ विकियाका अर्थ विकार है। उसके दो भेद हैं एक ज्ञानादिविपरिणामलक्षणा दूसरी देशांतरसंक्र3 मरूपा। जिसके द्वारा ज्ञान दर्शन आदिका परिणमन हो वह ज्ञानादिपरिणामलक्षणा विक्रिया है और 4 हूँ जिसके द्वारा एकदेशसे दूसरे देशमें जाना हो वह देशांतरसंक्रमरूपा विक्रिया है । जिनके शास्त्रोंमें हूँ एकांतरूपसे यह लिखा है कि आत्मा सर्वथा नित्य और व्यापक है उनके मतमें दोनों विक्रियाओंमें है है एक भी विक्रिया नहीं हो सकती क्योंकि जो पदार्थ सर्वथा नित्य है उसका किसीरूपसे परिणमन नहीं है
हो सकता । जब आत्मा नैयायिक आदिके सिद्धांतोंमें सर्वथा नित्य है तब ज्ञान दर्शन आदि उसके
गुणोंका परिणमन नहीं हो सकता इसलिये ज्ञानादिविपरिणामरूप विक्रिया आत्मामें बाधित है। इसी 8 प्रकार जो पदार्थ व्यापक-सर्वत्र मोजूद है वह एक जगहमे दूसरी जगह नहीं जा सकता । नैयायिक ६ आदि मतोंमें जब आत्मा सब जगह पर रहनेवाला व्यापक है तब वह एक जगहसे दूसरी जगह नहीं
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