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________________ मध्यान BRUAREERSOREOGREGARDHPU R है वेदको ईंटकी अग्नि अर्थात् अवेकी अग्निके समान माना है । सारार्थ पुरुषकी कामाग्नि फँसकी छ अग्निके समान जल्दी शांत हो जाती है । अंगारकी अग्नि गुप्त और कुछकाल ठहरनेवाली होती है , 2 इसलिये स्त्रीकी कामाग्नि कुछकालतक ठहरनेवाली होती है । जहाँपर ईंटे पकाई जाती हैं उस अवेकी ॐ आग बहुत कालतक रहती और सर्वदा धधकती रहती है इसलिये नपुंसककी कामाग्नि अधिक काल 3 तक रहती है ॥५२॥ जन्म योनि शरीर लिंगके भेदसे जिनका आपसमें भेद है और नाना प्रकारके पुण्य और पापोंकी अधीनतासे जिन्हें चारों गतियों में शरीर धारण करने पड़ते हैं ऐसे देव आदिकोंका जो ऊपर उल्लेख किया गया है वे जितनी आयु बांध चुके हैं उतनी आयुके पूर्ण हो जानेपर दूसरे शरीरोंको धारण करते हैं # हैं वा आयुके बीच में ही उन्हें प्राप्त शरीर छोडकर दूपरा शरीर धारण करना पडता है । इस शंकाका समाधान सूत्रकार देते हैं औपपादिकचरमोत्तमदेहासंख्येयवर्षायुषोऽनपवायुषः ॥५३॥ देव नारकी चरमोचम देहधारी और असंख्यातवर्षकी आयुवाले जीव, परिपूर्ण आयुवाले होते हैं। अर्थात् किसी भी कारणसे न्यून आयु होकर उनकी अकालमृत्यु नहीं होती। औपपादिका उक्ताः॥१॥ जिनका उपपाद जन्म हो वे औपपादिक कहे जाते हैं । देव और नारकियोंका उपपाद जन्म होता है इसलिये देव और नारकी औपपादिक हैं। ७६२ चरमशब्दस्यांतवाचित्वात्तजन्मनि निर्वाणाहग्रहणं ॥२॥ BSEBRUADIRECESSARD
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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