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IIXI
अध्याय
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उससमय छठे गुणस्थानमें वह जीव आहारक शरीरकी रचना करता है इसलिये यहां आहारक शरीरकी प्राप्ति तकके कालका प्रमाण अंतर्मुहूर्तकम अर्धपुद्गल परावर्तन काल होनेसे आहारक शरीरका उत्कृष्ट अंतर अंतर्मुहुर्तकम अर्धपुद्गल परावर्तन काल प्रमाण समझना चाहिये । आहारक शरीर जवतक अपना कार्य नहीं करता उसके पहिले चार अंतर्मुहूतें कहे गये हैं वे इसप्रकार है-..
दर्शनमोहोपशमसम्यक्त्वके समानकालीन संयम बताया गया है एक तो अंतर्मुहूर्त यह है। दूसरा वेदक सम्यक्त्वका अंतर्मुहूर्त है। तीसराआहारक बंधका अंतर्मुहूर्त है और चौथा आहारककी रचनाकार अंतर्मुहुर्त है । ये चार अंतर्मुहूर्त पहिले हो लेते हैं उसके वाद आहारक शरीरके कार्यका पांचवां अंतमुहूर्त है तथा प्रमचसे अप्रमत्त और अप्रमत्से प्रमच इसप्रकार अगणितवार उतरना चढना रूप कार्य। को अनुभव करनेवाले जीवके अनेक अंतर्मुहूर्त होते हैं। पश्चात् अधःकरणकी विशुद्धमे विशुद्ध होकर जीव थोडी देर ठहर जाता है तथा अघःकरणसे आगे अपूर्वकरण अनिवृचिकरण सूक्ष्मसापराय क्षीणकषाय सयोगकेवली और अयोगकेवली गुणस्थान है उन सबमें प्रत्येकका काल अंतर्मुहूर्त है। इन समस्त अंतर्मुहूर्तोंका काल मिलाकर जितना काल हो उसकालसे रहित अर्धपुद्गल परिवर्तनकाल आहारक शरीरका उत्कृष्ट अंतर है। ___ अंतरका अर्थ विहरकाल ऊपर बतला दिया गया है जो पदार्थ सदा विद्यमान रहता है उसका
विरहकाल नहीं हो सकता । तैजस और कार्मण शरीरोंका सदा काल जांवके साथ संबंध रहता है इस- | * लिये उनका विरह काल नहीं। इसप्रकार यह अंतरकी अपेक्षा औदारिक आदिका आपसमें भेद है।
- संख्यासे भेद-औदारिक शरीर असंख्यात लोकप्रमाण है । वैक्रियिक शरीर असंख्यात श्रेणी
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