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________________ RAHAR मबार रा भाषा A IS उत्कृष्ट अंतर अनंतकाल प्रमाण है क्योंकि कोई जीव देवपर्यायसे व्युत होकर और अनंतकाल पर्यंत 18 ॥ तिथंच और मनुष्योंमें घूमकर फिर देव हुआ वहांपर अपर्याप्तकका काल अंतर्मुहूर्तकालको अनुभवकर र | वह वैक्रिीयक शरीर प्राप्त करता है इसलिए अनंत कालके बाद वैक्रियिक शरीरकी प्राप्ति होनेसे वैकि|यिक शरीरका उत्कृष्ट अंतर अनंतकालका कहा जाता है। ___ आहारकका जघन्य अंतर अंतर्मुहूर्तकालका है क्योंकि प्रमत्तसंयंत मुनि आहारक शरीरकी | रचनाकर, अंतर्मुहूर्तपर्यंत उस आहारक शरीर सहित विद्यमान होकर जिसकार्यके लिये उस आहारक शरीरका निर्माण किया गया है उसके कार्यको समाप्त करता है पीछे फिर किसी लब्धिके कारण अंतमुहूर्त ठहरकर आहारक शरीरका निर्माण करते हैं । इससीतसे अंतर्मुहूर्त के बाद आहारक शरीरका निर्माण होनेसे जघन्य अंतर उसका अंतर्मुहर्तकाल है और उसका उत्कृष्ट अंतर अंतर्मुहूर्त कम अर्धपुद्गलपरिवर्तनकालका है क्योंकि जिस जीवने अनादिकालीन मिथ्यादर्शन मोह कर्मको उपशमाकर उपशम है। सम्यक्त्व और संयमको एक साथ प्राप्त किया है जो उपशम सम्यक्त्वसे च्युत होकर वेदकसम्यक्त्ती । बन अंतर्मुहूर्त ठहरकर अप्रमचगुणस्थानमें आहारक शरीरका बंधकर फिर प्रमचगुणस्थानमें आया "क्योंकि आहारक शरीरके बंध होते ही प्रमचगुणस्थान हो जाता है यह नियम है" वहाँपर आहारक शरीरको रचकर और उसे मूल शरीरमें प्रविष्टकर मिथ्यात्वी बना, वह जीव अंतर्मुहूर्तकम अर्धपुद्गल परिवर्तनकालप्रमाण संसारमें घूमकर मनुष्य हुआ, पूर्वोक्तप्रकारसे सम्यक्त्व पाकर असंयत सम्यग्दृष्टि वा संयतासंयत दोनों गुणस्थानों में किसी एक जगहपर दर्शनमोहका क्षयकर और संयमको प्राप्तकर उसने सातवे गुणस्थानमें आहारक शरीरका बंध किया उसीसमय उसका छठा गुणस्थान भी हो गया RECRUGALASHAILGADABASAUGASHASABS SARAIGADCALCUMEGESGREGISS
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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