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SGEECRUSSISRBHPASSटकने
तपके बलसे ऋद्धिकी प्राप्ति होना लब्धि है। जिसकी उत्पचिमें लब्धि कारण हो वह लब्धिप्रत्यय 5| कहा जाता है। चार्तिककार लब्धि और उपपाद शब्दका विशेष बतलाते हैं
निश्चयकादाचित्कीकृतो विशेषो लब्ध्युपपादयोः॥३॥ ____ उपपाद, जन्मका कारण है अर्थात् जन्म स्वरूप ही है इसलिये वह तो निश्चयसे होता ही है परंतु बालब्धिका होना निश्चय रूपसे नहीं वह कभी होती है और कभी नहीं भी होती है क्योंकि उत्पन्न हुए
पुरुषके पीछे तपके विशेष आदिकी अपेक्षा उसकी उत्पचि मानी है इसप्रकार नियमित रूपसे उपपाद होता है कादाचित्क रूपसे लब्धि होती है यही विशेषता उपपाद और लब्धि है। शंका
सर्वशरािणां विनाशित्वाद्वैक्रियिकविशेषानुपपत्तिरिति चेन्न विवाक्षितापरिज्ञानात् ॥४॥ विक्रियाका अर्थ विशेष नाश है वह सब शरीरों में समान रूपसे होनेवाला पदार्थ है क्योंकि प्रति समय हर एक शरीरमें घटना बढना और विनाश माना गया है इसरीतिसे जब सबही शरीर विक्रिया
के संबंधसे वैक्रियिक हैं तब वैक्रियिक शरीरमें कोई विशषता नरहनेपर भी उसे जुदा शरीर मानना अयुक्त है है ? सो ठीक नहीं । विक्रिया शब्दका जो अर्थ हमें इष्ट है शंकाकारने उसे नहीं समझा, यहॉपर है है विक्रिया शब्दका अर्थ विनाश नहीं किंतु अनेक प्रकारके विकृत आकारोंका धारण करना है खुलासा रूपसे वह इसप्रकार है
विक्रिया दो प्रकारकी मानी है एक एकत्वविक्रिया दूसरी पृथक्त्वविक्रिया। अपने ही शरीरको सिंह बाघ हंस कुरुर ( पक्षि विशेष) रूप परिणमा देना एकत्वविक्रिया है और अपने शरीरका भिन्न मकान मंडप आदि परिणत हो जाना पृथक्त्व विक्रिया है। भवनवासी व्यंतर ज्योतिषी और कल्पवासीर ७५२
PANEERISROIDROSबर