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रा अध्याय
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जो उपपादमें हो अर्थात् देव नाराकयोंकी उपपाद शय्यासे उत्पन्न हो वह औपपादिक कहा जाता है | KI 'अध्यात्मादित्वाादेकः' इस सूत्रसे उपपाद शब्दसे इसत्यय करनेपर औपयादिक' शब्दकी सिद्धि होती की ॥ है । इस रीतिसे जो उपपाद जन्ममें हो वह वैक्रियिक शरीर है ॥४६॥
संयमी आदि मनुष्योंके भी वैक्रियिक शरीरकी उत्पचि मानी है। यदि सामान्यरूपसे यही कहा है। जायगा कि जिस शरीरकी उत्पचि उपपाद जन्ममें हो वही वैक्रियिक है तब अनौपपादिक अर्थात् || | मनुष्योंमें और तियचोंमें जो वैक्रियिक शरीर होता है वह वैक्रियिक नहीं माना जायगा। सूत्रकार || PI इस विषयकी स्पष्टता करते हैं
लब्धिप्रत्ययं च ॥४७॥ वैक्रियिक शरीर लब्धिसे अर्थात् तपोविशेषरूप ऋद्धिप्राप्तिके निमिचसे भी होता है । 'लब्धिप्रत्ययं च । | इप्त सूत्रमें ऊपरके सूत्रसे वैक्रियिक शब्दकी अनुवृत्ति आती है। .
प्रत्ययशब्दस्यानेकार्थत्वे विवक्षातः कारणगतिः॥१॥ प्रत्यय शब्दके अनेक अर्थ हैं। 'अर्थाभिधानप्रत्ययाः' अर्थ शब्द और ज्ञान ये तीन पदार्थ हैं यहां पर प्रत्यय शब्दका अर्थ ज्ञान है । 'प्रत्ययं कुरु-ससं कुरु इत्यर्थः सत्य मानो, यहाँपर प्रत्यय शब्दका
सत्य अर्थ है । 'मिथ्यादर्शनाविरतिप्रमादकषाययोगाः प्रत्ययाः' मिथ्यादर्शन अविरति प्रमाद कषाय | और योग ये कारण हैं यहांपर प्रत्यय शब्दका अर्थ कारण है। प्रकृतमें भी प्रत्यय शब्दके कारण अर्थकी ॥ ही विवक्षा है इसलिये यहाँपर भी कारणार्थक प्रत्यय शब्दका ही ग्रहण है।
तपोविशेषर्डिप्राप्तिलब्धिः ॥२॥ .
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