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अप्रतीघाते॥४०॥ तैजस और कार्मण दोनों शरीर अप्रताघात हैं अर्थात् बलवान भी मूर्तिमान पदार्थसे इनका रुकना ॐ नहीं होता।
प्रतीघातो मूत्यंतरेण व्याघातः॥१॥ तदभावः सूक्ष्मपरिणामादयःपिंडे तेजोऽनुप्रवेशवत् ॥२॥
मूर्तिक पदार्थसे मूर्तिक पदार्थका रुकजाना प्रतीघात है। आग्निका परिणमन सूक्ष्म है इसलिए है कठिन भी लोहेके पिंडमें सूक्ष्म परिणमनके कारण जिसप्रकार अग्निका प्रवेश नहीं रुकता उसीप्रकार है तैजस और कार्मण शरीरका परिणमन भी सूक्ष्म है इसलिए वज्रपटल आदि कैसे भी कठिन पदार्थ है क्यों न बीचमें पडें, दोनों शरीरोंका रुकना नहीं होता-वे निरवच्छिन्नरूपसे प्रवेश कर जाते हैं इसलिए वे तैजस और कार्मण दोनों शरीर अप्रतिघात कहे जाते हैं। शंका
वैक्रियिकाहारकयोरप्यप्रतिघात इति चेन्न सर्वत्र विवक्षितत्वात ॥३॥ _ वैक्रियिक और आहारक शरीरोंका भी सूक्ष्म परिणमन होनेसे प्रतिघात नहीं होता फिर तैजस | और कार्मणको ही अप्रतिघात क्यों कहा गया वैक्रियिक और आहारकको क्यों नहीं कहा गया ? सो ठीक नहीं। लोकके अन्त पर्यंत तैजस और कार्मण शरीरोंका कहीं भी प्रतिघात नहीं होता । वैकि-टू यिक और आहारक शरीरोंका वैसा अप्रतिघात नहीं किंतु उनका प्रतिघात हो जाता है इसलिये इस सर्वत्र गमनकी विशेष विवक्षासे तैजस और कार्मण शरीरोंको अप्रतिघात कहा है ॥४०॥
१-केवली और श्रुतकेवलीके विना जिसका समाधान न हो सके ऐमी तत्तविषयक गूढ शंका हो जानेपर उसकी निवृत्तिके लिये प्रमत्त गुणस्थानव संयमीके भाहारक शरीरकी प्रकटता होती है और जहां केवली वा भतकेवली विराजते है यहां तक
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