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प्रकारसे शरीरका हो जाना विक्रिया है । जिसका प्रयोजन विक्रिया हो वह वैक्रियिक शरीर है । अर्थात् है। । जिसमें अनेक प्रकारके स्थूल सूक्ष्म हलका भारी इत्यादि विकार होनेकी योग्यता हो उसका नाम वैकि। यिक शरीर है।
आहियते तदिलाहारकं॥६॥ सूक्ष्म पदार्यके निर्णयकेलिए वा असंयम दूर करनेकेलिए प्रमच गुण स्थानवर्ती मुनियोंके जोप्रगट | जो होता है उसे माहारक शरीर कहते हैं-..
( तेजोनिमित्तत्वात्तजसं ॥७॥ ___ जो तेजका कारण हो वा जिसमें तेज रहता हो वह तेजस शरीर कहा जाता है।
कर्मणामिदं कर्मणां समूह इति वा कार्मणं ॥८॥ . बानावरण आदि आठ कर्मोंका जो कार्य हो वा कर्मोंका समूह हो उसका नाम कार्मण शरीर है। कर्म और उनका समूह यद्यपि अभिन्न पदार्थ है तथापि कथंचित् भेदविवक्षा मानकर यहां उनके समूहको | कार्मण शरीर कह दिया गया है। शंका
सर्वेषां कार्मणत्वप्रसंग इति चेन्न प्रतिनियतौदारिकादिनिमित्तत्वात् ॥९॥ ___ यदि कर्मों के कार्य वा कर्मों के समूहको कार्मण शरीर माना जायगा तो औदारिक आदिको भी कार्मण शरीर कह देना पडेगा क्योंकि औदारिक आदि शरीर भी कर्मों के कार्य वा कोंके समूहरूप इसरीतिसे केवल कार्मण शरीर मानना ही ठीक है औदारिक आदि भेदोंके गिनानेकी कोई आव
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