________________
अम्बार
ABIRENDISABHASHAISAS
|| जीवोंके शुभ अशुभ कर्मोंसे रचित और कर्मबंधके फलके अनुभव के स्थान शरीर कितने हैं। सूत्रकार | उन्हें गिनाते हैं
. औदारिकवैक्रियिकाहारकतैजसकार्मणानि शरीराणि ॥ ३६॥ ___ औदारिक वैक्रियिक आहारक तेजस और कार्मण ये पांच प्रकारके शरीर हैं।
शीर्यत इति शरीराणि, घटायतिप्रसंग इति चेन्न नामकर्मनिमित्तत्वाभावात् ॥१॥
जो नष्ट होनेवाले हों वे शरीर हैं। यदि यहाँपर यह शंका की जाय कि जो नष्ट होनेवाले हों वे || है शरीर हैं, तो नष्ट होनेवाले तो घट पट आदि पदार्थ भी हैं इसलिये उन्हें भी शरीर मानना पडेगा।सो ठीक | नहीं। जिसकी उत्पत्रिमें शरीर नाम कर्मका उदय कारण होगा वह शरीर कहा जा सकता है अन्य नहीं। औदारिक आदिकी उत्पचिमें शरीर नाम कर्मका उदय कारण है इसलिये वे ही शरीर कहे जा सकते हैं घट आदिकी उत्पत्तिमें शरीर नाम कर्मका उदय कारण नहीं इसलिये वे शरीर नहीं कहे जा सकते । इसप्रकार नामकर्मकी निमित्तताके विना घट आदिको शरीर कहना बाधित है । शंका
विगृहाभाव इति चेन्न रूढिशब्देष्वपि व्युत्पत्तौ क्रियाश्रयात् ॥२॥ यदि शरीर नामकर्मके उदयसे शरीर संज्ञा मानी जायगी तो शीर्यंत इति शरीराणि' ऐसा विग्रह || नहीं बन सकता ? सो ठीक नहीं । गो शब्द यद्यपि रूढ है तो भी 'गच्छतीति गौः' जो चले उसका नाम गाय है इस व्युत्पचिके अनुसार वह गमन क्रियाका आधार माना जाता है उसीप्रकार यद्यपि शरीर भी रूढि शब्द है तथापि 'शीयंत इति शरीराणि' जो नष्ट हों वे शरीर हैं इस व्युत्पत्ति के अनुसार वह
DISSORSHASGANDRAPARAN
A
R
७११
ASA