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है वे पोत हैं । 'जरायुजाश्च अंडजाश्च पोताच जरायुजाडजपोताः, तेषां जरायुजांडजपोताना' यह जरायुजांडजपोतका विग्रह है।
पोतजा इत्ययुक्तमर्थभेदाभावात् ॥ ४॥ . __कोई कोई लोग 'पोतजो ऐसा पाठ मानते हैं परन्तु वह अयुक्त है क्योंकि पोतके अन्दर कोई। अन्य पदार्थ उत्पन्न होनेवाला हो यह वात नहीं किंतु ऊपर जो पोतका अर्थ लिखा गया है वही उन्हें पोतज शब्दका भी अर्थ इष्ट है इसलिये जब पोतज और पोत दोनों समानार्थक हैं तब पोत शब्दका पाठ ही लाभकारी और निर्दोष है । शंका
आत्मा पोतज इति चेन्न तत्परिणामात् ॥५॥ जो पोतमें उत्पन्न हुआ हो वह पोतज है। पोतमें आत्मा उत्पन्न होता है इसलिये पोतजका अर्थ है आत्मा हो जानेसे अर्थभेद हो गया सो ठीक नहीं। पोतरूप परिणामसे परिणत आत्मा ही पोत कहा है। जाता है आत्मासे भिन्न पोत कोई पदार्थ नहीं इसराीतसे पोत और पोतज दोनोंका समान ही अर्थ || है। यदि यहांपर यह कहा जाय कि जिसप्रकार जरायुमें उत्पन्न होनेके कारण आत्माको जरायुज कहा || जाता है उसीप्रकार पोतमें उत्पन्न होनेके कारण पोतज कहना भी उचित है सो ठीक नहीं । क्योंकि ६) जरायुके समान पोत कोई भिन्न पदार्थ नहीं है । इसरीतिसे जब पोतज और पोत दोनों ही समानार्थक हा है तब सूत्रमें पोत शब्दका पाठ ही उपयुक्त है।
जरायुजगहणमादावभ्यर्हितत्वात् ॥६॥ कियारंभशक्तियोगात्॥७॥ केषांचिन्महाप्रभावत्वात्॥८॥ मार्गफलाभिसंबंधातू ॥९॥ .
ABOBORLHABARGESHOTSABAR
RECASABASASARAKHABAR