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________________ अध्याय RECORRECORRECENERAMESSURES उत्पत्ति के स्थानस्वरूप माताके उदरमें जो वीर्य और रज अचिच पदार्थ हैं उनका संबंध सचेतन आत्माके | साथ है। शेषास्त्रिविकल्पाः ॥२१॥ औपपादिक और गर्भजोंसे शेष जो संमूर्छनज जीव हैं उनमें कोई सचिच योनिवाले हैं कोई अचिच | योनिवाले हैं और कोई सचित्ताचिचस्वरूप मिश्रयोनिवाले हैं इस प्रकार उनमें तीनों भेद हैं। उनमें है। | साधारण शरीर एक दूसरेके आश्रयसे रहते हैं इसलिये वे सचित्चयोनिवाले हैं बाकीके कोई जीव आचच । | योनिवाले तो कोई मिश्रयोनिवाले हैं। ... ... शीतोष्णयोनयो देवनारकाः॥२२॥ - देव और नारकियोंमें बहुतोंके उपपाद स्थान उष्ण होते हैं और बहुतोंके शीत रहते हैं इसलिये वे fill शीत योनिवाले भी होते हैं और उष्ण योनिवाले भी होते हैं। उष्णयोनिस्तेजस्कायिकः ॥ २३ ॥ जो जीव अग्निकायिक हैं उनकी उत्पचिका स्थान नियमसे उष्ण ही रहता है इसलिये वे नियम से उष्ण योनिवाले ही हैं। . इतरे त्रिप्रकाराः॥२४॥ । देव नारकी और अग्निकायिक जीवोंसे भिन्न जो जीव हैं उनमें बहुतसे शीत योनिवाले होते हैं | || बहुतसे उष्ण योनिवाले होते हैं और बहुतसे शीतोष्णस्वरूप मिश्रयोनिवाले होते हैं इस प्रकार उनमें शीत आदि तीनों प्रकारकी योनियोंका संभव है। SARIDABALBARBRBRBRBPPER
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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