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मध्धाय
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किंतु जहां पर विभिन्नलिंगक आश्रय होता है वहां पर पुंवद्भाव नहीं होता । योनि शब्द सीलिंगक | होनेसे यहां पर योनिरूप आश्रय विभिन्नलिंगक' अतएव विभिन्नार्थक है समानलिंगक किंवा समानातर्थक आश्रय नहीं इसलिये उपयुक्त पुंवद्भाव बाधित है ? सो ठीक नहीं। योनि शब्द पुल्लिंग स्त्रीलिंग | दोनों लिंग है। यहां पर वह पुल्लिंग ही है इसलिये समानलिंगक आश्रय हो जानेसे यहां पुंवद्भावका | प्रतिषेध नहीं हो सकता। यदि यहां पर यह शंका की जाय कि
योनिजन्मनोरविशेष इति चेन्नाधाराधेयभेदाद्विषोपपत्तेः॥१४॥ | जिससमय आत्मा देवरूप जन्मपर्याय वा नारकी रूप जन्मपर्यायसे परिणत होता है उससमय वही
औपपादिक कहलाता है और वही योनि कही जाती है इसलिये योनि और जन्म दोनो एक हैं, भिन्न ||६| || भिन्न नहीं ? सो ठीक नहीं। सचिच आदि योनियोंका है आधार जिसको ऐसा आत्मा संमूर्छन आदि है। | जन्मके कारण शरीर आहार और इंद्रियादिके योग्य पुद्गलोंको ग्रहण करता है इसलिये योनि आधार
और जन्म आधेय है इसरीतिसे आधार और आधेयंका भेद रहनेसे योनि और जन्म एक नहीं कहे। जा सकते।
सचित्तग्रहणमादौ चेतनात्मकत्वात् ॥१५॥ सचिचका अर्थ चेतनात्मक पदार्थ है । चेतनात्मक पदार्थ समस्त लोकमें प्रधान माना जाता है | इसलिये सूत्रमें सबसे पहिले सचिव पदका उल्लेख किया गया है।
तदनंतरं शीताभिधानं तदाप्यायनहेतुत्वात् ॥१६॥ सचेतन पदार्थोंकी वृद्धि वा उत्पचिमें प्रधान कारण शीत पदार्थ है अर्थात् जहां पर विशेष ठंडी ||
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