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________________ A अध्याय यहाँपर 'एकसमय' इस समस्तपदका खंडरूप होनेसे समय शब्द गौण है इसलिये उसकी इस सूत्रमें अनुवृत्ति नहीं हो सकती ? सो ठीक नहीं। 'ए दौ त्रीन' ये तीनों संख्यावाचक शब्द यहांपर विशेपण हैं। इनके लिये कोई न कोई विशेष्य अवश्य होना चाहिये । वह विशेष्य यहां दूसरा कोई संभव | हो नहीं सकता इस सामर्थ्यसे यहाँपर समय शब्दका संबंध कर लिया गया है। इसलिये एकसमय दो | समय तीनसमय पर्यंत विग्रहगतिमें जीव अनाहारक होते हैं यह अर्थ यहां निरापद् है । - वाशब्दोऽत्र विकल्पार्थों ज्ञेयः॥२॥ सूत्रमें जो वाशब्द है उसका अर्थ विकल्प है और विकल्प यथेष्ट अर्थका द्योतक है इसलिये एक ६ समय दो समय वा तीन समय जहां जैसी योग्यता रहती है उसीके अनुसार वहां जीव अनाहारक द रहता है यह यहां तात्पर्य है । शंका सप्तमीप्रसंग इति चेन्नात्यंतसंयोगस्य विवक्षितत्वात् ॥३॥ ' 'एक दो तीन समय तक जीव अनाहारक रहता है। यहां पर आहार क्रियाका अधिकरण काल है। तथा जहां पर अधिकरण अर्थ होता है वहां पर सप्तमी विभक्ति होती है इसलिये 'एकं द्वौ त्रीन्' । यहां पर 'एकस्मिन् द्वयोः त्रिषु' यह सप्तमी विभक्ति होनी चाहिये ? सो ठीक नहीं। यहां पर कालकृत 18 असंत संयोगकी विवक्षा है अर्थात् एक समय दो समय और तीन समयों में अखंडरूपसे अनाहारक || रहता है किसी एक खंडमें नहीं यह यहां पर विवक्षा है तथा यह नियम है कि जहाँपर कालकृत अत्यंत १ सप्तम्यधिकरणे च । २३ । ३६ । अधिणरण अर्थमें सप्तमी विभक्ति होती है । भाषारोऽधिकरणं । १-४-४५ प्रधिकरण का अर्थ आधार है। सिद्धांतकौमुदी पृष्ठ ६५ । KAARCHIVERSARALEGEGREECHER UGUGRASAGAAAAAAEECE
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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