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________________ अध्याय त०रा० भाषा AALCC A CHAALABOBALASAHESARLABABA आदिसे नहीं है किंतु वहांपर वे स्वतः ही उत्पन्न हैं। क्योंकि जो पदार्थ असत् है उसकी उत्पचि नहीं हो | सकती। यदि परमाणुओंमें स्पर्श आदि न मानकर स्थूलस्कंधोंमें स्वतः उनकी उत्पति मानी जायगी। तो वह बाधित किंवा असंभव कल्पना समझी जायगी । हां ! यद्यपि परमाणुगत स्पर्श आदिको असमर्थतासे इंद्रियां ग्रहण नहीं कर सकतीं इसलिए वे इंद्रियों के अग्राह्य हैं तथापि रूढिबलसे परमाणुगत स्पर्श | आदिका व्यवहार बाधित नहीं । तदर्थाः, तेषामर्थाः तदर्थाः, यहांपर तत् शब्दसे इंद्रियोंका ग्रहण है | अर्थात् स्पर्श आदि इंद्रियोंके विषय हैं । शंका तदर्थी इति वृत्त्यनुपपत्तिरसमर्थत्वात् ॥ २॥ न वा गमकत्वान्नित्यसापेक्षेषु संबंधिशब्दवत् ॥३॥ वाक्यगत जो अवयव समर्थ होते हैं उन्हींका आपसमें समास होता है। असमर्थ अवयवोंका समास नहीं होता। तथा जो अवयव दूसरे पदार्थों की अपेक्षा रखते हैं वे असमर्थ कहे जाते हैं। तदर्थाः इस वाक्यमें रहनेवाला तत् शब्द इंद्रियोंकी अपेक्षा रखता है इसलिए असमर्थ है । इसरीतिसे 'तेषामर्थाः । तदर्थाः यह जो तदर्थ शब्दका षष्ठीतत्पुरुष समास ऊपर कहा गया है वह अनुचित है ? सो ठीक नहीं। जहांपर गमकता रहती है वहांपर भी समास हो जाता है तथा वह गमकपना जिसतरह सदा अपेक्षा रखनेवाले संबंधी शब्दोंमें माना जाता है उसीप्रकार जितने भी नित्यसापेक्ष-सदा अपेक्षा रखने वाले शब्द हैं उन सबमें माना जाता है इसरीतिसे देवदत्तका गुरुकुल वा देवदत्तका गुरुपुत्र, यहांपर १-वासतो जन्म सतो न नाशो दीपस्तमः पुगलभावतोऽस्ति । (२४) [ वृहत्स्वयंभूस्तोत्र ] 'नासतो विद्यतेभावो नाभावो विद्यते सत: [अन्यत्र ] असतः प्रादुर्भावे द्रव्याणामिह भवेदनंतस्वं । को वारयितुं शक्तः कुंभोत्पत्ति मृदायभावेऽपि ॥ १०॥[पंचाध्यायी) LCALCASALUALCORRER -
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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